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घड़ा जहर का ढक्कन अमृत का
भाव अच्छा है, भाषा अच्छी नहीं है । भाव अच्छा नहीं है, भाषा अच्छी है । भाव भी अच्छा नहीं है, भाषा भी अच्छी नहीं है ।
प्रभावित करता है कषाय
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सामान्यतः यह माना जाता है- - जैसा भाव होता है, वैसी भाषा होती है । भाव अच्छा है तो भाषा भी अच्छी होगी, किन्तु भाव के अच्छा होने पर भी भाषा अच्छी नहीं होती । जैसा भाव है, वैसी भाषा नहीं होती । यह अन्तर क्यों होता है ? यह अन्तर डालने वाला तत्त्व कौन-सा है ? हम उस तत्त्व को पकड़ें । हमें यह जानना होगा - इंद्रियां और कषाय समाहित हैं या नहीं ? इन दो स्थितियों के आधार पर सारा निर्णय होगा । व्याख्याकारों ने इसे रूपक की भाषा में प्रस्तुत किया - हृदय पवित्र है और जिह्वा मधुर भाषी है, इसका तात्पर्य है - घड़ा अमृत का है और ढक्कन भी अमृत का है । हृदय अकलुषित है और जिह्वा कटुभाषिणी है, इसका तात्पर्य हैघड़ा अमृत का है किन्तु ढक्कन जहर का है । प्रश्न आया - यह कैसे हो सकता है ? इसका समाधान है कि हृदय की पवित्रता होने पर भी वाणी के साथ कोई कषाय जुड़ जाता है । कषाय सबको प्रभावित करता है । हृदय, मन, वाणी और शरीर - सबको प्रभावित करने वाला है कषाय ।
अमृत का घड़ा : अमृत का ढक्कन
हृदय का मतलब है भावतंत्र | हमारा ज्ञानपक्ष माना गया है मस्तिष्क, भाव-पक्ष माना गया है हृदय और क्रियापक्ष माना गया है - शरीरतंत्र | हृदय का मतलब इससे नहीं है, जो धड़क रहा है । यद्यपि इस पर भी भावों का असर होता है । यह भी भावों से प्रभावित होता है । थोड़ा-सा भाव उच्चावच होता है, हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, रक्त की शोधन क्रिया में अन्तर आ जाता है । हृदय पर हर भाव का आघात भी लगता है और उल्लास भी होता है । जैसा भाव वैसा आघात या उल्लास । यह प्रभावित होने वाला हृदय है, किन्तु भावों का जो मूल संवाहक हृदय है, वह हमारे मस्तिष्क का ही एक भाग है हाइपोथेलेमस । वह हृदय पवित्र है, कषाय का उस पर असर नहीं है किन्तु वाणी का अलग तंत्र है । उसका संबंध हृदय से नहीं है । यद्यपि वाणी भाव का प्रतिनिधित्व करती है । भाव आया, भाव से विचार बना फिर भाषा उसे बाहर लाती है । यह क्रिया कुछेक क्षणों में हो जाती है । बहुत त्वरा से क्रिया का संपादन हो जाता है । पता ही नहीं चलता । कुछ व्यक्तियों के हृदय तंत्र - भाव तंत्र पर कषाय का असर कम होता है । वह उसे प्रभावित नहीं करता है तो भाव भी अच्छा होता है । जो वाणी का तंत्र है, हमारी भाषा पर्याप्ति है, उससे जो भाषा प्राण बनता है,
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