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________________ घड़ा जहर का, ढक्कन अमृत का भाव का जगत् भीतर का जगत् है । भाषा का जगत् बाहर का जगत् है । भाव हमारे भीतर रहते हैं और उन्हें हम भोगते हैं । भाषा से हम दूसरे के साथ, समाज के साथ संपर्क स्थापित करते हैं। समाज हमें भाव से नहीं, भाषा से पहचानता है। प्रसिद्ध कहावत है-'बोल्या कि लाध्या'-व्यक्ति बोलता है और पता चल जाता है कि वह कैसा है ? अभिव्यक्ति : तीन माध्यम हमारा सारा संपर्क भाषा के माध्यम से होता है। भाव इतने गूढ़ होते हैं कि उन्हें अमूर्त जैसा कहा जा सकता है। भावों के बाहर के जगत में प्रगट होने के दो साधन बन सकते हैं-शरीर और वाणी। मन को शरीर के साथ जोड़ दें तो विचार भी एक साधन हो सकता है । विचार की भी रीडिंग होती है। शरीर, वाणी और विचार-ये तीन भाव अभिव्यक्ति के साधन बनते हैं। सबसे पहला है शरीर । शरीर में अभिव्यक्ति का मुख्य साधन है आंख । दूसरे साधन भी हैं, पर मुख्य है आंख । एक कवि ने ठीक कहा है---- भय चिता आलस अमन, सुख दुःख हेत अहेत । मन महोप के आचरण, दृग दीवान कहि देत ॥ मन रूपी राजा के जो आचरण हैं, उन्हें आंख रूपी दीवान बता देता है। सारी अभिव्यक्ति शरीर के माध्यम से होती है। दूसरा माध्यम है विचार । यह बहुत सूक्ष्म है। किसी विशेष व्यक्ति को ही फेस रीडिंग (Face Reading) चेहरे को पढ़ने का और थोट रीडिंग (Thought Reading) विचारों को पढ़ने का अनुभव होता है। सामान्य आदमी के लिए यह बात बहुत कठिन है । भाव और भाषा अभिव्यक्ति के जितने भी माध्यम हैं, उनमें सशक्त और स्थूल माध्यम है-भाषा। वह सीधी दूसरों तक पहुंचती है इसीलिए भाषा और भाव का सम्बन्ध बतलाया गया है। भाषा और भाव-इन दोनों के आधार पर मनुष्य का वर्गीकरण कर दिया गया। चार प्रकार के मनुष्य बतलाए गए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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