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मंजिल के पड़ाव
विज्ञान का। आज यह जरूरी है-आज के मनोवैज्ञानिक कर्मशास्त्र एवं धर्मशास्त्र को पढ़ें, जैन आगम पढ़ें और आगम अध्येता मनोविज्ञान को पढ़े। इससे मानव स्वभाव पर नया प्रकाश डाला जा सकता है । एक आगम अध्येता के पास तत्त्व तो बहुत गहरे हैं पर समायोजन की कला नहीं है । कैसे मानवीय स्वभाव पर प्रकाश डालना चाहिए ? समस्याओं का निदान कैसे खोजना चाहिए ? उसका उपचार कैसे करना चाहिए ? धर्म और मनोविज्ञान-दोनों को साथ-साथ पढ़ लिया जाए तो ये बहुत बड़ी समस्याएं समाहित हो जाएंगी । आयुर्वेद के आचार्यों ने भूत का अभिप्राय वायु से लिया है। इस दृष्टि से पढ़ें तो यह स्पष्ट हो जाता है- एक व्यक्ति का मन कितने रूप ले लेता है और कैसे उसका उपशमन किया जा सकता है । दो मार्ग
अवदमन, रूपांतरण और उन्नयन-ये तीन अवस्थाएं हैं। इनके साथ एक और जोड़ देनी चाहिए-उपशमन । वृत्ति का उपशमन कैसे करें ? इसी उपशमन की प्रक्रिया का नाम है-अल्प संक्लेश की प्रक्रिया । जैसे-जैसे संक्लेश का उपशमन होगा, वैसे-वैसे वृत्ति का परिष्कार होता चला जाएगा। वृत्तियों के परिष्कार का सबसे अच्छा मार्ग है-अध्यात्म, आत्मानुभूति । उसे हम स्वाध्याय कहें या ध्यान । स्वाध्याय का मतलब है-आत्मा के बारे में विशेष स्थिति बनाने वाला अध्ययन । आत्मनिरीक्षण, अनुप्रेक्षा या जप का प्रयोग भी स्वाध्याय है । ध्यान और स्वाध्याय-इन दो मार्गों से वृत्ति का उपशमन हो सकता है । आज के इस तनाव के युग में स्वस्थता, शीतीभूतता और परम सुख-तृप्ति-ये तीन बातें उपलब्ध हो जाएं तो इससे बढ़कर और कोई उपलब्धि नहीं हो सकती । वृत्ति के उपशमन की साधना से उसे उपलब्ध किया जा सकता है ।
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