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________________ मंजिल के पड़ाव इस प्रश्न के संदर्भ में पांच विकल्प दिए गए हैंकायप्रवीचार-स्त्री और पुरुष के काय से होने वाला मैथुन का आसेवन । स्पर्शप्रवीचार-स्त्री के स्पर्श से होने वाला मैथून का आसेवन । रूपप्रवीचार-स्त्री के रूप को देखकर होने वाला मैथुन का आसेवन । शब्दप्रवीचार-स्त्री के शब्द को सुनकर होने वाला मैथुन का आसेवन । मनःप्रवीचार-स्त्री के प्रति मानसिक संकल्प से होने वाला मैथुन का आसेवन । उदात्तीकरण काम का भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क तथा प्रथम दो देवलोक के देवता मनुष्य की भांति काम का सेवन करते हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक के देवता काय प्रवीचार नहीं करते। वे केवल स्पर्श से तृप्त हो जाते हैं। जब कामवृत्ति जागती है, देवांगनाएं उपस्थित हो जाती हैं। देवता उनका स्पर्श करते हैं। इतने में ही कामवृत्ति शांत हो जाती है। ब्रह्मलोक और लांतक देवलोक के देवता केवल रूपप्रवीचार करते हैं । जब वासना जागती है तब देवियां उपस्थित हो जाती हैं। ___ शुक्र और सहस्रार देवलोक के देव शब्द प्रवीचार करते हैं। वे न कायप्रवीचार करते हैं. न स्पर्श और रूप प्रवीचार । जब काम-वासना जागती है तब देवांगनाओं का या उनके आभूषणों का शब्द सुनते हैं । कामवृत्ति शांत हो जाती है। ___ नौवें से बारहवें देवलोक के देव मनःप्रवीचार करते हैं। जब कामवृत्ति जागती है, देवियों के प्रति मानसिक संकल्प करते हैं। कामवृत्ति उपशांत हो जाती है। उससे उच्च देवलोक के जो देव हैं, वे अप्रवीचार होते हैं। वे काय, स्पर्श, रूप, शब्द या मन-किसी के द्वारा भी प्रवीचार नहीं करते। उनमें कामवृत्ति जागती ही नहीं है। हम प्रारम्भ से चलें, उदात्तीकरण का निदर्शन देखें। प्रथम देवलोक के देवों में कायप्रवीचार होता है । उसका उन्नयन हुआ और हो गया स्पर्शप्रवीचार । उसका उन्नयन हुआ और हो गया रूपप्रवीचार । उसके उन्नयन से रह गया शब्दप्रवीचार। उसका उन्नयन है मनःप्रवीचार । वृत्ति अधिक उदात्त बनी, काम-वासना समाप्त हो गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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