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________________ मौलिक मनोवृत्तियां ६७ उन्नयन-व्यक्ति अपनी वृत्ति का उन्नयन (Sublimation) कर सकता है। अवदमन-जो इच्छा वांछनीय नहीं होती, उसको व्यक्ति दबा सकता है, उसका रिप्रेसन (Repression) कर सकता है । रूपान्तरण-मनुष्य वृत्ति का रूपान्तरण (Convertion) कर सकता ये तीन प्रकार की अवस्थाएं होती हैं। सबसे अच्छी बात उन्नयन की मानी जाती है। फ्रायड ने वृत्ति का मूलभूत आधार काम (सेक्स) को माना । कामवृत्ति का परिष्कार होता है। काम की भावना जागी और उसका अवदमन कर दिया या उसका रूपान्तरण कर दिया किन्तु सबसे अच्छा माना जाता है उसका सब्लीमेशन-उन्नयन । व्यक्ति कला, शिल्प या साहित्य में चला गया, उसमें इतना डूब गया कि उसे काम की वृत्ति याद ही नही आती। नेहरू का कथन पं० नेहरू से पूछा गया-आपने दूसरी शादी क्यों नहीं की? उन्होंने कहा-मुझे इसके बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला, समय ही नहीं मिला। दूसरे कार्यों में आदमी इतना खो जाता है कि उसे काम की वृत्ति याद ही नहीं आती । इसीलिए कहा जाता है-अपने दिमाग को व्यरत रखो, खाली मत रखो। जिससे काम की वृत्ति को अवकाश ही न मिले। यही है उन्नयन । प्रश्न हो सकता है-क्या इससे काम की वृत्ति समाप्त हो जाएगी? क्या काम के विकार प्रकारान्तर से नहीं सताएंगे ? मनोवैज्ञानिक नीत्से ने कहा-यह उन्नयन की बात बिल्कुल ठीक नहीं बैठती है। उन्नयन के बाद भी काम के विपरिणाम नहीं आए, ऐसा हमारा अनुभव नहीं है । यह एक चर्चा का विषय बन गया-क्या वास्तव में उन्नयन हो सकता है या नहीं हो सकता ? होता है तो उसका परिणाम क्या आता है ? पांच विकल्प हम इस समस्या पर विचार करें। स्थानांग सूत्र और तत्त्वार्थभाष्य में एक सुन्दर प्रसंग आता है । देवताओं की कामवृत्ति पर विचार किया गया । प्रश्न आया-क्या देवता भी काम का आसेवन करते हैं ? 'हां, करते हैं।' 'कैसे करते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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