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मंजिल के पड़ाव
२. राग ३. द्वेष ४. अस्मिता ५. अभिनिवेश मनोविज्ञान के अनुसार मौलिक मनोवृत्तियां दो हैं१. जीवन मूलक मनोवृत्ति २. मृत्यु मूलक मनोवृत्ति चौदह प्रकार की मौलिक मनोवृत्तियां इन दो का विस्तार हैं१. पलायनवृत्ति
८. कामवृत्ति २. संघर्षवृत्ति
९. स्वाग्रहवृत्ति ३. जिज्ञासावृत्ति
१०. आत्मलघुतावृत्ति ४. आहारान्वेषणवृत्ति ११. उपार्जनलघुतावृत्ति ५. पित्रीयवृत्ति
१२. रचनावृत्ति ६. यूथवृत्ति
१३. याचनावृत्ति ७. विकर्षणवृत्ति
१४. हास्यवृत्ति चार, दस, पांच, दो, चौदह-ये सारे वृत्तियों के वर्गीकरण हैं विकास का जीवन
वृत्तियां और संज्ञाएं हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं। प्रश्न है-मनुष्य क्या करे ? वृत्तियां पशु में भी होती हैं किन्तु वे बदलती नहीं। जैसी वृत्तियां जागती हैं, पशु उन्हें भोगता रहता है। मनुष्य में विशेषता यही है कि वह अपनी वृत्तियों को बदल सकता है, उनका परिष्कार कर सकता है । यह विशेषता एक भेदरेखा खींचती है। उसे हम विवेक भी कह सकते हैं और धर्म भी।
आदमी को कुछ अर्थों में प्राकृतिक जीवन जीना चाहिए। यदि वह सम्पूर्ण प्राकृतिक जीवन जीता तो आदमी जंगली होता, वह विकास नहीं कर पाता । एक प्राकृतिक जीवन है और दूसग है विकास का जीवन । मनुष्य ने विकास की बात सोची। उसमें इतनी क्षमता है कि वह केवल प्रकृति पर संतुष्ट नहीं हो सकता। क्षमता इसलिए है कि उसे विशेष प्रकार की बुद्धि, चेतना तथा विवेक प्राप्त है । उसने केवल पदार्थ जगत् में विकास शुरू नहीं किया, किन्तु अपने व्यक्तिगत जीवन के विकास के भी कई मार्ग ढंढ़े । उसने अपनी मौलिक मनोवृत्तियों में भी विकास और परिष्कार की बात सोची। वृत्ति : तीन अवस्थाएं
मनोविज्ञान के अनुसार वृत्तियों की तीन अवस्थाएं बनती हैं
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