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मौलिक मनोवृत्तियां
मनुष्य शरीरधारी प्राणी है। उसकी सारी प्रवृत्तियां शरीर से चलती हैं । शरीर एक बहुत बड़ा खजाना है। उसमें क्या-क्या छिपा हुआ है ? यह जानना सामान्य आदमी के वश की बात नहीं है। प्रतिदिन शरीर को देखने वाला उसे जानता नहीं है, कल्पना भी नहीं कर सकता, इतना इस शरीर में है । कुछ स्थूल है, कुछ सूक्ष्म है, कुछ सूक्ष्मतर है, कुछ सूक्ष्मतम है । आगे से आगे बढ़ें, सूक्ष्मता बढ़ती चली जाती है। शरीर में कुछ सूक्ष्मतर प्रकम्पन हैं. वे बाहर आते हैं और हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं । उनकी पहचान की गई। स्थानांग सूत्रकार ने उनका नाम दिया --संज्ञा, संवेदना । पतंजलि ने उनका नाम दिया-क्लेश । मनोविज्ञान में उनका नाम है --मौलिक मनोवृत्तियां । इस सचाई तक बहुत सारे लोग पहुंचे कि भीतर में ऐसे कुछ छिपे हुए तत्त्व हैं, जो हमें अभिप्रेरित कर रहे हैं, हमारे जीवन में कुछ विशेष प्रकार की घटनाएं घटित करने के लिए जिम्मेदार बन रहे हैं । वत्तियों का वर्गीकरण
स्थानांग सूत्र में संज्ञाओं के दो वर्गीकरण प्राप्त हैं । प्रथम वर्गीकरण के अनसार संज्ञाएं चार हैं
१. आहार ३. मैथुन
२. भय ४. परिग्रह दूसरे वर्गीकरण के अनुसार संज्ञाएं दस हैं१. आहार
६. मान २. भय
७. माया ३. मैथुन
८. लोभ ४. परिग्रह
९. लोक ५. क्रोध
१०. ओघ महर्षि पतंजलि ने पांच क्लेश बतलाए हैं
१. अविद्या १. ठारणं ४/५७८ २. ठारणं १०/१०५ ३. पातंजलयोग दर्शन २/३
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