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ज्यू धमै ज्यूं लाल व्यक्तियों में वैराग्य का भाव बना रहा ।
तीसरा व्यक्ति गया पत्नी के पास । उसने पत्नी से कहा-जो व्यक्ति मनुष्य होकर आत्मचिन्तन नहीं करता, आत्मा की बात नहीं सोचता, उसका क्या जीवन है ? पत्नी ने कहा-यदि साधु बनने की बात कही तो अभी छत पर जाकर नीचे कूद जाती हैं। पत्नी ने ऐसी तेज आंच दी, लाल आंख की कि आग की लपटों में काठ का गोला भी जल गया।
एक व्यक्ति बचा, वह मिट्टी के गोले जैसा था । वह माता-पिता और बच्चों का गुस्सा सहन कर गया। लोगों की आलोचना भी सहन कर गया । पत्नी उसकी बात सुनकर रौद्र रूप में आ गई। उसने कहा-अगर तुम्हें साधु ही बनना था तो मुझे क्यों लाए ? तुम साधु नहीं बन सकोगे। बहुत धमकियां दी - मैं मर जाऊंगी, कुएं में गिर जाऊंगी। तुम्हें बदनाम कर दूंगी। वह मौनभाव से सुनता रहा। उसने कहा-मैं किसी को मारना नहीं चाहता किंतु कोई मर जाता है, तो उसे बचाना मेरे सामर्थ्य की बात भी नहीं है । यह राग और विराग अपने-अपने मन की बात है । यह मेरी भावना का प्रश्न है-मैं साधना करूंगा। पत्नी ने रूप बदला । पहले रौद्र रूप दिखाया, फिर अनुकूल बन गई । उसने मधुर स्वरों में कहा--पतिदेव ! आप ऐसा मत करो। आपके सिवाय मेरा कौन है ? उसने बहुत विनती की। अनुकूलता और प्रतिकूलता-दोनों दिखला दी पर उसे कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह मिट्टी का गोला था । उसका स्वभाव था-ज्यूं धर्म, ज्यूं लाल । उसका वैराग्य अविचल बना रहा । संदर्भ आध्यात्मिकता का
प्रभाव की दृष्टि से ये चार प्रकार के लोग हैं । एक है आध्यात्मिकता का नय । मोम के गोले जैसी वृत्ति का आदमी आध्यात्मिक नहीं बन सकता । वह नितान्त भौतिक रहता है । जो लाख के गोले जैसा होता है, अध्यात्म का स्पर्श मात्र करता है। जो काठ के गोले जैसा होता है, वह अध्यात्म में थोड़ा अंतःप्रवेश करता है, कुछ भीतर जाता है पर टिक नहीं पाता । अनुकूलता और सुख-सुविधाओं को देख विचलित हो जाता है । जो मिट्टी के गोले जैसा होता है, वह आध्यात्मिक होता है । वह अपने आपमें रहता है, न बाधाओं से विचलित होता है और न सुख-सुविधाओं के प्रलोभन में फंसता है । प्रश्न है बड़प्पन का
हम यह मानते हैं-आत्मा परमात्मा बन सकती है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह भावना जागती है-~मैं बड़ा बनूं । प्रश्न है-बड़प्पन कहां से आए ? हमारा सामाजिक और व्यावहारिक मूल्य यह है-बड़प्पन वह है, जो बाहर से आरोपित किया जाता है । सामाजिक मूल्यों में पद का महत्त्व
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