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मंजिल के पड़ाव
संदर्भ सहिष्णुता का
ये चार गोलों की चार प्रकृतियां हैं। मनुष्य की भी चार प्रकृतियां होती हैं । इस एक सूत्र की पचास नय से व्याख्या की जा सकती है। पहला नय है सहिष्णुता का। एक आदमी इतना मृदु होता है कि किसी बात को सहन नहीं कर सकता। कोई बात होती है और कपड़े डाल देता है। सहन करना जानता ही नहीं है। दूसरा आदमी कुछ सह लेता है। ज्यादा कष्ट आता है तो अधीर हो जाता है । तीसरे प्रकार के आदमी में सहिष्णुता बहुत होती है किन्तु यदि कोई भारी कष्ट आता है तो वह विचलित हो जाता है । एक आदमी मिट्टी के गोले जैसा होता है। कितना भी कष्ट आ जाए, विचलित नहीं होता । जितना ज्यादा कष्ट आता है, उसकी सहिष्णुता और दृढ़ता बढ़ती चली जाती है। वह प्राण न्यौछावर करने को तैयार रहता है पर विचलित नहीं होता। संदर्भ प्रभाव का
. ये चार प्रकार के लोग होते हैं । आचार्य भिक्षु ने चार गोलों की एक ढाल बनाई और इस सूत्र का बहुत सुन्दर भाष्य किया। उन्होंने दूसरे नय से इसकी व्याख्या की। वह नय है----प्रभावित होना और प्रभावित न होना । एक नय है सहिष्णुता का, दूसरा नय है प्रभाव का । आचार्य भिक्षु ने एक कहानी को कल्पना का रूप दिया-मुनि के पास चार व्यक्ति आए। मुनि ने चारों को धर्म की बात सुनाई। धर्म की व्याख्या सुनकर उनके मन में वैराग्य जाग गया। उन्हें लगा--यह भौतिकता का जीवन भी कोई जीवन है ? इसमें आदमी अपने से दूर और पदार्थ के निकट चला जाता है। यह कैसा जीवन है ? एक नया प्रकल्प उनके मन में जागा । एक भावना जागी-चलो, घर जाएं और पूरे जीवन को साधना में लगा दें। कोई विशेष अवसर आता है तब विशेष प्रकल्प की जागृति संभव बन जाती है। उनका राग विराग में बदल गया। केवल एक बचा
वे धर्म स्थान से बाहर आए। लोगों ने थोड़ी-सी आलोचना कीइन साघुओं का तो काम ही ऐसा होता है, दूसरों का घर छुड़ा देते हैं। तुम भी इनके चक्कर में फंस गए। थोड़ा सा ताप पड़ा, एक व्यक्ति वहीं पिघल गया।
___ तीनों घर पहुंचे । माता-पिता को सारी बात बताई। उन्होंने कहाधर्म सुना, बड़ा अच्छा लगा। मन में वैराग्य जाग गया। इच्छा जाहिर कीसाधु बन जाएं। माता-पिता बोले-तुम मूर्ख हो। साधुपन कितना कठिन है । उन्हें भय दिखाया । जो लाख का गोला था, वह पिघल गया। दो
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