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ज्यू धमै ज्यूं लाल
तरतमता के अनेक दृष्टिकोण हैं। उनमें एक है मृदुता और कठोरता का । मृदु होना अच्छा है और मृदु होमा अच्छा नहीं भी है । कठोर होना अच्छा है और कठोर होना अच्छा नहीं भी है। कहा जाता है-वजादपि कठोराणि मुनि कुसुमादपि-फूल से भी मृदु और वज्र से भी कठोर । सापेक्ष दष्टि से विचार करें, तो किसी को अच्छा या बुरा अपेक्षा के साथ ही कहना होगा । हम निरपेक्ष होकर कुछ नहीं कह सकते । गोला और मनुष्य
स्थानांग सूत्र में मनुष्य के व्यक्तित्व का आकलन, उसके स्वभाव का समायोजन मिलता है। एक सुन्दर रूपक से समझाया गया है उसके स्वभाव को। कहा गया--गोला चार प्रकार का होता है
मोम का गोला। लाख का गोला । काष्ठ का गोला। मिट्टी का गोला। मनुष्य मी चार प्रकार के होते हैंमोम के गोले जैसा, लाख के गोले जैसा, काष्ठ के गोले जैसा,
मिट्टी के गोले जैसा। गोले की प्रकृति
__ मोम का गोला थोड़ा-सा ताप लगते ही पिघल जाता है । लाख का गोला थोड़ा अधिक ताप लगने से पिघल जाता है । काठ का गोला न सूरज के ताप से पिघलता है, न दूसरे ताप से पिघलता है । सीधी आग लगती है तो वह पिघल जाता है । मिट्टी का गोला नहीं पिघलता। वह न सूरज के ताप से पिघलता है और न आग से। अगर आग में डालो तो परिणाम आएगा-ज्यूं धमै, ज्यूं लाल । जितनी आग तीव्रता पकड़ेगी, वह लाल होता चला जाएगा।
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