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शय्या जागने के लिए
नया चिन्तन
दो शब्द बहुत प्रचलित हैं-आसन बैठने के लिए है और शय्या सोने के लिए । आगम सूत्रकार ने नया चिन्तन दिया- शय्या केवल सोने के लिए नहीं होती, जागने के लिए भी होती है । जो शय्या पर जागता है, वह सचमुच महान् आदमी होता है । सुख शय्या-आरामदायक शय्या पर जागना बहुत बड़ी बात है।
प्रश्न है-आदमी को सुलाता कौन है ? कहा गया-चार बातें हैं, जो आदमी को सुला देती हैं -
१. संदेह २. असंतोष ३. विषयासक्ति
४. असहिष्णुता दुःख के हेतु
पहली बात है-संदेह । जब भी मन में संदेह होता है, जागता हुआ आदमी सो जाता है। सबसे ज्यादा विघ्न डालने वाला अगर कोई तत्त्व है तो वह है संदेह। संदेह के सामने अणुबम भी छोटा पड़ जाता है । यह है दुःख शय्या। दूसरा विघ्न है असंतोष । जितना हमें मिला, उससे तृप्ति नहीं होती। जो नहीं मिला, उससे असंतोष बढ़ता है । एक लखपति बन गया, उसे लखपति बनने का संतोष नहीं होता, किन्तु करोड़पति नहीं बनने का असंतोष जरूर होता है । तीसरा विघ्न है विषय की आकांक्षा । व्यक्ति में विषय की आसक्ति और मूर्छा बनी रहती है, वह दुःख देती है। दुःख का चौथा हेतु है वेदना। जब-जब शरीर में कोई रोग या वेदना होती है, आदमी को दुःख होता है । सुख शय्या
ये चार दु.ख के हेतु हैं । जो व्यक्ति इन चारों हेतुओं को पार कर जाता है, वह सुख की शय्या पर रहते हुए भी जागता रहता है।
१. ठाणं ४।४५०
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