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4.
मंजिल के पड़ाव
डालो। व्यक्ति के विरुद्ध मौत का फतवा जारी हो जाता है । एक धार्मिक व्यक्ति में इतनी भी सहिष्णुता नहीं कि कोई आपका स्वतंत्र विचार रख दे । वह विमत को सहन नहीं कर सकता। इसका मतलब यह है-धर्म वह होता है, जो स्वतंत्रता को मान्यता नहीं देता। पांच-दश हजार वर्ष पहले जो कह दिया गया, वह सत्य है किन्तु आज सत्य के लिए दरवाजा बंद हो गया है। ऐसा कदाग्रह जहां आ जाता है, वहां श्रावक के लिए धर्म का कोई अवकाश नहीं रहता। मति हो दर्पण के समान
हम विचार करें-धर्म कहां प्राप्त होता है ? धर्म वहां प्राप्त है, जहां स्वतंत्रता मान्य है, आग्रह मान्य नहीं है और कदाग्रह तो बिल्कुल भी मान्य नहीं है। भगवान महावीर ने अनेकांत का प्रतिपादन किया। उसका हृदय है- एक वस्तु के अनन्त पर्याय होते हैं । दस दिन पहले एक पर्याय था, आज दूसरा पर्याय हो गया। दस दिन पूर्व एक आदमी अस्वस्थ था और दस दिन बाद स्वस्थ हो गया । स्वस्थ अस्वस्थ हो जाता है और अस्वस्थ स्वस्थ । पर्याय का परिवर्तन निरन्तर होता चला जा रहा है । चितन के पर्याय का परिवर्तन भी होता है, तत्त्व के पर्याय का परिवर्तन भी होता है । जो पर्याय के परिवर्तन को स्वीकार नहीं करता, वह है आग्रही । जो उसे ठुकराना चाहता है, वह है कदाग्रही । भगवान महावीर ने कहा-बदलते हुए पर्याय की सचाई को स्वीकार करो । तुम सत्य के साथ चल सकोगे । श्रावक वह होता है, जो सत्य को स्वीकार करता है । सत्य को स्वीकार करने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वह दर्पण के समान बना रहे । ध्वजा के समान भी न बने, स्थाणु के समान भी न बने, खरकंटक के समान भी न बने । दर्पण के समान हमारी मति जागे। वह सत्य को ग्रहण करने वाली मति होगी। उस मति के द्वारा ही इन साम्प्रदायिक झगड़ों को समाप्त कर हम स्वच्छ मार्ग का, प्रगति के मार्ग का, प्रतिपादन कर सकेंगे।
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