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वे भी श्रावक हैं
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हैं। उनमें बंगाल का भी नाम है । हमारा शास्त्र कहता है-यह आर्य देश है । आपने कैसे कहा----यह अनायं देश है ?
'हमने तो यही सुन रखा है और यही मानेंगे । शास्त्रों को हम नही
मानते।'
न तो वे शास्त्रों की बात मानने को तैयार और न अपनी वारणाओं को बदलने के लिए तैयार । ऐसे लोग अपने आग्रह को छोड़ना नहीं चाहते। कदाग्रह
एक है कदाग्रह भूमिका वाले मनुष्य । अगर यह भूमिका नहीं होती तो पर्चेबाजी नहीं चलती, आक्षेप वाली बातें नहीं चलती। ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो हमेशा झगड़ा करने में रस लेते हैं ।
हम कैसे माने-सब लोग समान होते हैं ? हमें व्यवहार की बात को मानकर चलना पड़ेगा । व्यवहार की बात को न मानें तो सारी स्थितियां बदल जाएंगी। ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें कोई मति नहीं दी जा सकती, जिन्हें कोई हिताहित का भान भी नहीं होता । ऐसे लोग जानबूझकर किसी भी बात को पकड़ लेते हैं, अपने हाथों अपने हित को निरस्त कर देते हैं । बुद्धि के चार प्रकार
__चार प्रकार के लोग व्यवहार की भूमिका पर होते हैं । महावीर ने कहा-श्रावकों में भी ऐसे लोग होते हैं। आश्चर्य होता है-जो श्रावक हैं, जिन्होंने धर्म को अंगीकार किया है, उनमें भी ऐसी चार मति वाले लोग हो जाते हैं । हम बुद्धि को चार भागों में बांट दें।
१. यथार्थ को ग्रहण करने वाली बुद्धि।
२. वह बुद्धि, जो यथार्थ को ग्रहण तो करती है, पर पचा नहीं पाती।
३. वह बुद्धि, जहां विचार का दरवाजा बन्द है । दरवाजा खुलता ही नहीं । कोई नई बात भीतर जा ही नहीं सकती। इस कोटी में आते हैं सारे पुराणपंथी, रूढ़िवादी । ऐसे लोग यह नहीं सोचते-आज जो बात पुरानी है, वह सौ वर्ष पहले नई थी। ऐसे लोगों के लिए आचार्य भिक्षु ने कहा-अधजले ढूंठ जैसे लोग । ऐसे लोगों के दिमाग में नई बात को प्रवेश करने के लिए कोई अवकाश नहीं होता ।
४. चौथे प्रकार की बुद्धि है कदाग्रह से भी युक्त । यह आग्रह से भी खतरनाक है। आज जो सांप्रदायिक झगड़े चलते हैं, वे आग्रह और कदाग्रह बुद्धि के आधार पर चलते हैं। धर्मगुरु कहलाने वाला कह देता है-मेरे मत या संप्रदाय के विरोध में अगर कोई थोड़ी सी टिप्पणी करता है, उसे मार
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