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३. स्थाणु के समान । ४. खरकंटक के समान ।
चार प्रकार का व्यवहार
भगवान महावीर ने कहा- कुछ लोग दर्पण के समान होते हैं । दर्पण इतना साफ और निर्मल होता है कि उसके सामने जो भी आता है, उसका यथार्थं प्रतिबिम्ब आ जाता है ।
जो व्यक्ति दर्पण के समान होता है, वह यथार्थ तत्त्व को सहजता से स्वीकार कर लेता है । वह उस तत्त्व को हृदयंगम कर लेता है । जो व्यक्ति ध्वजा के समान होता है, वह एक बार तो बात को स्वीकार करता है किन्तु हवा चलती है तो वह इधर-उधर हो जाता है । हे ध्वजा जैसा अस्थिर मति वाला होता है, कहीं टिकता ही नहीं है । जो आग्रही होते हैं, उनमें बात की पकड़ होती है । जो अच्छी बात को छोड़ना नहीं चाहते, उन्हें पुराणवादी कहा गया । आज संघर्ष है पुराणवादियों और नववादियों का । जो पुराना, वह अच्छा । जो नया, वह बुरा । ऐसे लोग बहुत कम हैं, जो यथार्थ को स्वीकार कर सकें, सचाई को स्वीकार कर सकें । नई बात को सुन सकें और उसे पचा सकें । नई बात को पचाना तो दूर की बात है, सुनना भी पसंद नहीं करते । जो मस्तिष्क के फ्र ेम में मंढ़ दिया गया, उसके विपरीत थोड़ी-सी बात आती है तो तमतमा उठते हैं । आचार्यवर ने जब भी कोई परिवर्तन किया, बड़ी विकट समस्याएं आई हैं |
निदर्शन
ऐसा माना जाता था- - बंगाल अनार्य देश है, वहां साधुओं को नहीं विचरना चाहिए । आचार्यंवर कलकत्ता में थे । कुछ व्यक्ति बोले- आपको अनार्य देश में विहार नहीं करना चाहिए । आचार्यवर ने कहा - भगवान् महावीर कहां विचरते थे ? क्या राजस्थान में विहार करते थे ?
'नहीं ।'
'तो फिर ?'
'बंगाल और बिहार में करते थे ।'
'क्यों करते थे ?'
मंजिल के पड़ाव
'कुछ कारण रहा होगा'
'भगवान ने विचार किया- मुझे बहुत निर्जरा करनी है इसलिए
समय वह अनार्य प्रदेश सकते हैं तो उनके शिष्य क्यों पच्चीस आर्य देश माने गए
वे संथालों-आदिवासियों के बीच गए। उस कहलाता था । अनार्य प्रदेश में महावीर जा नहीं जा सकते ? उन्हें बताया गया - साढ़े
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