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________________ वेभी श्रावक हैं गुरुदेव ! मैंने ऐसे आदमी को भी देखा, जो प्रवचन के बीच ही बोल उठा-यह बात हमें मान्य नहीं है। मैंने सदा सुना है-धर्म होता है अगले जीवन को सुधारने के लिए और आप कह रहे हैं वर्तमान जीवन को सुधारने के लिए धर्म है । धर्म भी वार्तमानिक बन गया, ऐहलौकिक बन गया। जबकि धर्म पारलौकिक होता है। आपकी बात हमें मान्य नहीं है। मैंने देखा-उनमें आग्रह है, बात की पकड़ है । एक ऐसा व्यक्ति भी देखा, जिसने प्रवचन के बीच ही झगड़ा शुरू कर दिया। वह आग्रह तक सीमित नहीं रहा, कदाग्रह में चला गया। उसने कहा-महाराज ! आप प्रवचन करना जानते ही नहीं हैं। पहले प्रवचन करना सीखो । उसने इतना कदाग्रह किया, परिषद् में कोलाहल मच गया। यह सब घटना देखने के बाद-सब आत्माएं समान हैं, यह सिद्धांत मुझे सही नहीं लगा। अगर सब समान होते तो यह घटना क्यों घटती ? समान है स्वरूप आचार्य ने कहा-वत्स ! तुमने जो सुना, उसका हार्द नहीं समझा। णो होणे णो अइरित्ते-यह निश्चयनय का सिद्धांत है। जहां आत्मा के स्वरूप का प्रश्न है, वहां न कोई हीन होता है और न कोई अतिरिक्त । सब आत्माओं का स्वरूप एक जैसा ही है। सबमें अनंत क्षमता है, अनंत ज्ञान और दर्शन है । कुछ भी फर्क नहीं है, चाहे वह वनस्पति का जीव है या मनुष्य का जीव । किन्तु यह निश्चयनय की बात व्यवहार में सम्मत नहीं है। जहां व्यवहार नय का प्रश्न है, वहां यह सिद्धांत मान्य नहीं है । व्यवहार में हम मानेंगे-सब आत्माएं समान नहीं हैं, सब मनुष्य समान नहीं हैं । कुछ यथार्थग्राही हैं, कुछ अस्थिर बुद्धि वाले हैं, कुछ आग्रही हैं और कुछ कदाग्रही। यथार्थग्रहिणः केचित्, केचित् अस्थिरबुद्धयः । केचिद् आग्रहिणो लोका, कदाग्रहपराः परे । विभिन्न मतयो लोकाः, इति सत्यं सनातनम् । सर्वेषां तुल्यता वत्स ! व्यवहारे न सम्मता ॥ चार प्रकार के मनुष्य मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक स्थिति के आधार पर अनेक प्रकार के वर्गीकरण किए हैं। व्रती और सम्यक दृष्टि के आधार पर हम मनुष्यों का वर्गीकरण करें तो चार प्रकार के मनुष्य होते हैं १. दर्पण के समान । २. ध्वजा के समान । १. ठाणं ४/४३१ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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