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मंजिल के पड़ाव
दान देना बड़ा कठिन होता है और वह भी सात्त्विक वृत्ति के साथ । निःस्वार्थ भाव से दान देना बड़ा मुश्किल होता है। इसीलिए कहा गया'दानसूरे वेसमणे--दान में शूर हैं वैश्रमण । वह न जाने कितने लोगों को दान देता है। युद्ध शूर हैं वासुदेव
युद्ध में शूर हैं वासुदेव----युद्धसूरा वासुदेवा । चक्रवर्ती पद की दृष्टि से बड़ा होता है । वासुदेव का राज्य होता है तीन खण्ड का और चक्रवर्ती का राज्य होता है छह खण्ड का । परन्तु युद्ध में जो पराक्रम वासुदेव का है, वह चक्रवर्ती का नहीं। वासुदेव महाबली माने जाते हैं। चाहे कृष्ण को लें, लक्ष्मण को लें, वे बहुत पराक्रमी हुए हैं। वीर्य और शौर्य में वासुदेव सबसे पराक्रमी होता है । एक ओर खर दूषण की चौदह हजार की सेना, दूसरी ओर अकेले लक्ष्मण । पर लक्ष्मण को कोई परवाह नहीं । वासुदेव बड़े पराक्रमी होते हैं । पराक्रम की पराकाष्ठा है वासुदेव । पराक्रम के प्रकार
ये शूरता के चार उदाहरण हैं, पर शौर्य का काम हजारों क्षेत्रों में बंट जाता है । पराक्रम के बिना कुछ भी नहीं होता। प्रकृति का नियम ऐसा है कि किसी में एक प्रकार का पराक्रम जागता है तो किसी में दूसरे प्रकार का । शरीर का ही संदर्भ लें। किसी के पैरों में पराक्रम जागता है, वह चलने में बड़ा पराक्रमी होता है। किसी के हाथों में पराक्रम होता है। इसी आधार पर मंत्र शास्त्र में विद्याओं का विकास किया गया। कहा जाता है---पर के अंगूठे पर ध्यान करो, नाभि पर ध्यान करो, शक्ति केन्द्र पर ध्यान करो। अंगूठे पर ध्यान करेंगे तो लाघव आएगा, शरीर में पराक्रम बढ़ेगा। नाभि पर ध्यान करने से आरोग्य का पराक्रम आएगा। सबमें एक जैसा पराक्रम नहीं होता, पर हम एक बात अवश्य जान लें-हमारे पास सब कुछ है और एक पराक्रम नहीं है, तो कुछ भी नहीं है। शक्ति-विकास का मंत्र
प्रश्न है-शक्ति का विकास कैसे हो? हम इस पर मनन करें। मैं अनुभव की बात करूं । एक समय था-हमारे आस-पास समस्याएं प्रतीत होतीं। दूसरे लोग आलोचनाएं करते । हिन्दुस्तान के एक बहुत बड़े विचारक ने आलोचना की-तेरापन्थी साधु क्या हैं ? अपने भक्तों के बीच बैठ जाते हैं, कुछ ढाले गा लेते हैं, बस हो गया धर्म-व्याख्यान । उस आलोचना को आचार्यवर ने सुना पर उत्तर नहीं दिया। उन्होंने तय कर लिया-हमें इसका उत्तर देना है, शक्ति बढ़ा कर । एक मंत्र मिला-अपनी शक्ति का
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