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पराक्रम की पराकाष्ठा
क्षमार हैं अर्हत्
हमारे सामने सहन करने का आदर्श या पराकाष्ठा है - अर्हत् । बताया गया - 'खंतिसूरा अरहंता' - सहन करने में सबसे ज्यादा पराक्रमी होते हैं अर्हत् । मुनि भी पराक्रमी होते हैं । वे न जाने कितने ही जीवों को सहन करते हैं । व्यक्ति में जितना बड़प्पन होगा, वह उतना ही छोटों को सहन करेगा | सहन करना कोई कायरता नहीं है । कायर आदमी कभी सहन नहीं कर सकता । कायर आदमी का सहन करना उसकी विवशता है पर एक शक्तिशाली आदमी सहन करता है, तो उसका नाम है - सहिष्णुता । भगवान् महावीर ने चण्डकौशिक सर्प को भी सहा । उनमें इतना पराक्रम था कि उनका सारा बल सहन करने में नियोजित हो गया । सहन करने की पराकाष्ठा में परिगणित होते हैं - अर्हत् ।
तपः शूर
महावीर के युग से लेकर आज तक बहुत से ऐसे साधु-साध्वियां हुए हैं, जिन्होंने बहुत कुछ सहन किया है । बहुत सहिष्णु थे वे । यह है तपस्या का बल ! एक साध्वी ने तेरापन्थ द्विशताब्दी पर बारह मास की तपस्या की । भोजन नहीं किया, केवल आछ के पानी पर रही। 'तवशूरा अणगारा'अनगार तपस्या में शूर होता है । तपस्या से बड़ा बल और पराक्रम मिलता है । योगक्षेम वर्ष में एक साध्वी ने ८८ वर्ष की अवस्था में अनशन किया । ५५ दिन का अनशन आया । कितनी बड़ी बात है ! यह अनगार की बात है । तपस्या में पराकाष्ठा अनगार की होती है ।
दानशूर हैं कुबेर
तीसरा शूर है दान का के ये दो उदाहरण अध्यात्म के
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कमजोर आदमी जी नहीं सकता । पराक्रम क्षेत्र के हैं । सहन करना है या तपस्या करना है, वही कर सकता है, जो पराक्रमी होगा । प्रस्तुत दो उदाहरण हैंलौकिक क्षेत्र के । दान के क्षेत्र में आदर्श है कुबेर । इतना बड़ा दानी है कि वह धन का देवता कहलाता है । वह यक्ष है ।
पुराने जमाने की बात है । एक पंडित राजा के पास आए । राजा ने सोचा - यह कुछ मांगने आया है । राजा की दान देने की नियत नहीं थी । राजा ने कहा- ब्राह्मणराज ! आप अगस्त्य मुनि की संतान हैं, अगस्त्य ऋषि तो समुद्र को तीन चुल्लु में पी गए थे। आप तीन घड़े पानी पीकर तो दिखाएं । आप जो मांगेंगे, वही मिलेगा । पंडितजी चतुर थे । वे बोले – महाराज ! आप रघुवंशी हैं | राम ने बड़े-बड़े पत्थर समुद्र में तिरा दिए थे । आप एक छोटा-सा कंकर पानी में तिराकर दिखाएं तो मैं तीन घड़ा पानी पीकर दिखा सकता हूं ।
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