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________________ १२ पराक्रम की पराकाष्ठा एक सूची है दुर्लभ वस्तुओं की दुनिया में दुर्लभ क्या है ? उसमें अंतिम वस्तु बतलाई गई है - - वीर्य । पराक्रम के अभाव में हमारी बहुत सारी प्रवृत्तियां ठप्प हो जाती हैं। सपने सपने रह जाते हैं । उनकी क्रियान्वित नहीं हो सकती । जो सारा दृश्य जगत् है, वह पराक्रम की ही निष्पत्ति है । यदि पराक्रम नहीं होता तो कुछ भी नहीं होता । जो भी होता है, उसका कारण है पराक्रम । एक पराक्रम सैकड़ों शाखाओं में बंट जाता है । पराक्रम स्थानांग सूत्र में पराक्रम को चार वर्गों के साथ जोड़ दिया - एक वह व्यक्ति, जो सहनशीलता में बड़ा शूरवीर होता है । एक वह व्यक्ति, जो तपस्या करने में शूरवीर होता है । एक वह व्यक्ति, जो दान देने में शूरवीर होता है और एक वह व्यक्ति है, जो युद्ध लड़ने में बड़ा शूरवीर होता है । कहा गया शांति में शूर हैं - अर्हत् तप में शूर हैं - अनगार दान में शूर हैं - वैश्रमण युद्ध में शूर हैं— वासुदेव । सहिष्णुता यदि पराक्रम न हो, तो व्यक्ति सहिष्णु नहीं हो सकता । दूसरे की वृत्तियों को सहन करना, उसके आक्रोश को सहन करना कम बात नहीं है । बड़े-बड़े लोग घबरा जाते हैं। एक दिन साथ रहते हैं, दूसरे दिन किनारा करने लग जाते हैं । कुछ लोग ही सहन करना जानते हैं । एक पुत्रवधु ने कहा – मैं सास को सहन करती हूं इसलिए कि कुल की मर्यादा बनी रहे । मैं अपने नौकरों को भी सहन मेरी शालीनता बनी रहे । अगर सहनशीलता नहीं संयुक्त परिवार की प्रणाली चल नहीं पाती । सैकड़ों थे, लेकिन आज संयुक्त परिवार टूट रहे हैं । इसका कारण है सहिष्णुता की कमी । यदि सहनशीलता की शक्ति जाग जाए, तो अर्हत् की दिशा में पैर आगे बढ़ जाए । करती हूं, इसलिए कि होती तो हिन्दुस्तान में आदमी एक साथ रहते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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