________________
उदय और अस्त
जीवन का लक्ष्य
__ मानव जीवन का लक्ष्य क्या है ? यह प्रश्न मनुष्य के मन में उभरता रहता है । लक्ष्य को परिभाषित करना सहज-सरल नहीं है। प्रत्येक मनुष्य अपने चिंतन, शक्ति और बुद्धि के द्वारा लक्ष्य का निर्धारण करता है। यदि उसका सामान्यीकरण किया जाए तो कहा जा सकता है-मानव-जीवन का लक्ष्य है शक्ति का विकास। इस दुनिया में कमजोर आदमी के अस्तित्व का टिकना मुश्किल है। शक्तिशाली ही इस दुनिया में बच पाता है ।
डार्विन ने विकासवादी सिद्धांत के अनुसार यह प्रतिपादित कियाप्रत्येक प्राणी अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए संघर्ष करता है । इस सिद्धांत के प्रतिपक्ष में नोत्से ने कहा- यह सही नहीं है। प्रत्येक प्राणी शक्तिअर्जन के लिए संघर्ष करता है। शक्ति का विकास करना जीवन का लक्ष्य है। जैन नीतिशास्त्र की भाषा में कहा गया-जीवन का लक्ष्य हैउदय । इस सूत्र को समझने के लिए स्थानांग सूत्र में चार विकल्प प्रस्तुत किए गए है
१. उदित और उदित । २. अस्त और उदित । ३. उदित और अस्त ।
४. अस्त और अस्त । सफलता का सूत्र
यह सूत्र शक्ति के सिद्धांत की व्याख्या करता है। उदय का मानदण्ड है, हमारी शक्ति का विकास । हमारे जितने भी विकास हैं, उसकी पृष्ठभूमि में है शक्ति । ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम है, अन्तराय कर्म के क्षयोपशम का योग नहीं है, तो ज्ञान काम नहीं आएगा। भौतिक विकास का प्रश्न है या आध्यात्मिक विकास का, प्रत्येक विकास के पीछे अगर शक्ति का वरदान है तो सब कुछ है । यदि शक्ति नहीं है तो कुछ भी नहीं है । इसका अर्थ है-अन्तराय कर्म को दूर करना । शक्ति का विकास करना सफलता का सबसे पहला सूत्र हैं। १. ठाणं ४/३६३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org