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________________ मंजिल के पड़ाव ये सारे कारण वर्तमान के साथ जड़े हुए हैं। यह कभी नहीं कहा गया-देवताओं को प्रसन्न करो, तुम स्वर्ग में चले जाओगे, सारा गतिचक्र स्वनिष्ठ, व्यक्तिनिष्ठ आचरण पर आधारित है। दो शब्दों में उलझी हैं समस्याएं आज की सारी सामाजिक और राजनैतिक समस्याएं-इन दो शब्दों में उलझी हुई हैं । महाआरंभ और महापरिग्रह-इन शब्दों का अर्थ है-केन्द्रित हिंसा और केन्द्रित परिग्रह । हिंसा का केन्द्रीकरण और परिग्रह का केन्द्रीकरण । दो धारणाएं बन गईं-एक विकेन्द्रित अर्थ व्यवस्था और दूसरी केन्द्रित अर्थ व्यवस्था, विकेन्द्रित हिंसा और केन्द्रित हिंसा। जहां-जहां कुछ लोगों के हाथ में आर्थिक व्यवस्था है, वहां सब कुछ केन्द्रित है । अस्सी करोड़ जनसंख्या वाले हिन्दुस्तान में देश की पूंजी सौ-दोसौ घरानों में सिमट जाए तो वह निश्चित ही पूरे समाज में उच्छृखलता पैदा करेगी, हिंसा को उभारेगी। भगवान् महावीर ने कहा-महाआरम्म और महापरिग्रह-नरक का कारण है। आचारांग के इन शब्दों को हिंसा के लिए याद करें-'एस खलु णरये'-यह नरक है' । नरक का मतलब मरने के बाद का ही नहीं है । जिस समाज में अर्थ-व्यवस्था इतनी गड़बड़ाई हुई होती है, वह समाज सचमुच नारकीय जीवन भोगता है । यह मूढता है, मूर्छा है, मार है, मृत्यु है । इस असंयमित अर्थ व्यवस्था के कारण आज करोड़ों आदमी नारकीय जीवन भोग रहे हैं। वैसे स्थान में अगर एक रात किसी को रख दिया जाए तो वह सोचेगा--इससे खराब और क्या नरक होगा? आज भी देश में दस-बीस करोड़ ऐसे लोग हैं, जिन्हें दो बार भी पूरा भोजन नहीं मिलता। इन सारी स्थितियों के आलोक में जैन आचारशास्त्र को आज के संदर्भो में पढ़ना बहुत जरूरी है। हो सकता है, इसके आधार पर हम भी समाज के सामने कुछ समाधान प्रस्तुत कर सकें। इसी संदर्भ में अणुव्रत का मूल्यांकन करना है, उसका युगीन भाषा में प्रस्तुतीकरण करना है । यह प्रस्तुतीकरण धर्म को नया आलोक देगा और सामाजिक व्यवस्था को सुधारने में भी योगभूत बन सकेगा। १. आयारो १/२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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