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________________ चार गतियां : आचारशास्त्रीय दृष्टिकोण जुड़ी ? जब तक आध्यात्मिकता की बात नहीं होगी, तब तक क्या होगा ? आचारशास्त्र को अन्तर के साथ जोड़ा जाए। उसे आध्यात्मिक आधार मिले और आध्यात्मिकता के आधार पर सारे निर्णय हों । जैन आचारशास्त्र का यह मूल आधार रहा । आन्तरिक अध्यवसाय कैसा है ? समता है या विषमता है । इस आधार पर सारा निर्णय किया गया । चार गतियां : आचारशास्त्र इन सारे संदर्भों में जैन आचारशास्त्र को हम पढ़ते हैं तो चार गति की बात समझने में बड़ी सुविधा होती है। जैन आगमों में चार गतियां वर्णित हैं' - नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव । प्रत्येक गति में जाने के चारचार कारण बतलाए गए हैं । नरक गति के चार कारण ये हैंमहाआरंभ - अमर्यादित हिंसा महापरिग्रह - अमर्यादित संग्रह पंचेन्द्रिय वध मांसाहार | तियंच गति के चार कारण ये हैं माया - -मानसिक कुटिलता निकृत — ठगाई असत्य वचन कूट तोल -- माप । मनुष्य गति के चार कारण ये हैं* - प्रकृति-भद्रता प्रकृति-विनीतता सदय-हृदयता परगुण-सहिष्णुता | देव गति के चार कारण ये हैं सरागसंयम संयमासंयम बाल-तप अकाम निर्जरा । १. ठाणं ४ / २८७ २. ठाणं ४ / ६२८ ३ ठाणं ४ / ६२९ ४. ठाणं ४ / ६३० ५. ठाणं ४/६४१ Jain Education International ४१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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