________________
चार गतियां : आचारशास्त्रीय दृष्टिकोण
किसे मिला ? हिन्दुस्तान में ही क्यों मिला ? ईश्वर ने अमुक धर्म को ही आदेश क्यों दिया ? वेदों का उद्गाता ईश्वर बना या पैगम्बर ? महाप्रभु के आदेश अमुक-अमुक व्यक्तियों को ही क्यों मिले ? यह बड़ा जटिल विषय बन जाता है । जैन दर्शन ने इन दोनों का समन्वय किया। इन्द्रिय जगत् की एक सीमा है और ईश्वरीय आदेश तुम्हारी पवित्र आत्मा के लिए है इसलिए आत्मा से भिन्न आदेशों की अपेक्षा मत रखो । अपनी पवित्र आत्मा में से ही आदेशों को खोजो। यह सूत्र सामने आया-जो वीतराग पुरुष कहता है, वही हमारे लिए आदेश है । यह कोई ईश्वरीय आदेश नहीं है । हमारे जैसी ही आत्मा ने अपनी साधना के द्वारा राग और द्वेष को शान्त किया है । उस शांत आत्मा में से जो कुछ निकलता है, वह हमारे लिए आदेश और निर्देश बन जाता है। आचार का आधार है अनुभव
हम वीतराग के आदेश को न स्वीकार करें तो बड़ी कठिनाई हो जाती है। हर किसी व्यक्ति की बात को मानना भी हमारे लिए बड़ी कठिनाई है। एक व्यक्ति ने कहा-यह ईश्वरीय आदेश है । प्रश्न होगा-किसी व्यक्ति को ईश्वर का आदेश मिला किन्तु उसकी व्याख्या किसने की ? व्याख्या करने वाला तो ईश्वर नहीं है । एक ही प्रकार के आदेश की व्याख्या सौ प्रकार की हो जाती है। किसे सच मानें, किसे न मानें ? ईश्वर का आदेश क्या है ? मूल खोजना मुश्किल हो जाता है । या तो वह व्यक्ति इतनी साधना करे, स्वयं ईश्वरीय भूमिका तक पहुंच जाए। उसके बाद वह कह सकता हैयह ईश्वरीय आदेश है । व्याख्याकार में जैसी बुद्धि होगी, वह वैसी व्याख्या करेगा और बोलेगा-यह ईश्वरीय आदेश है । इतना जटिल विषय हैक्या मूल है और क्या ईश्वरीय आदेश है ? समझना कठिन है । जैन-आचार शास्त्र में इस विषय को सुलझाया गया-न तो ईश्वरीय आदेश जैसी बात है, न ईश्वर ने किसी एक व्यक्ति से कहा है, न कोई इन्द्रिय सुखवाद जैसा हमारे आचार का आधार है। हमारे आचार का आधार बनता है अपना अनुभव । उस व्यक्ति का अनुभव, जो वीतरागता की भूमिका तक चला जाए । वह अनुभव बताने वाला पुरुष हमारे सामने है, कोई खोजने की जरूरत नहीं है । उसने जो कुछ लिखा है, बहुत सीधी भाषा में निर्देश दिया है, उसको हम मानकर चलें। यही जैन आचारशास्त्र का आधार बन गया। जैन आचारशास्त्र का मूल आधार बनता है वीतराग का वचन । जिस व्यक्ति ने वीतराग का जीवन जीया और उस व्यक्ति ने जो कहा, वह हमारे आचार का आधार बन सकता है। तीसरा आधार
आचारशास्त्र का तीसरा सूत्र है-आध्यात्मिकता । हमारा नीति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org