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________________ ३६ मंजिल के पड़ाव बदलाव क्यों नहीं ? एक प्रश्न बहुत बार आता है-महावीर हो गए, बुद्ध हो गए, शंकर हो गए, राम और कृष्ण हो गए, विवेकानन्द, परमहंस, महात्मा गांधी आदि हो गए पर समाज वैसा का वैसा है। हिंसा और अपराध वैसे ही चल रहे हैं। वे कुछ भी बदल नहीं सके । इसका सटीक उत्तर दिया है आचार्य विनयविजय जी ने। आचार्य भिक्षु ने उसकी विशद व्याख्या की। विनयविजयजी ने कहा-'तीर्थङ्कर भी अपने आस-पास को नहीं बदल सकते तो सारे संसार की बात क्यों करें ! क्या महावीर जमाली को बदल पाए ? वह महावीर का दामाद था, शिष्य था फिर भी महावीर उसे नहीं बदल पाए ।' गांधी के परिवार को देखें । क्या गांधी अपने लड़के को बदल पाए ? उसे नहीं बदला जा सका। कितना विराट् है भाव जगत् ! हम इस भाव जगत् की विराटता और विशालता को देखें । इतना विशाल और विराट् है भावों का जगत् कषायों का जगत् । उसे पहचाना ही नहीं जा सकता । हम अपनी आत्मा का विश्लेषण करें, अपने ही भावों के जगत् का अध्ययन करें। एक व्यक्ति के भावों का जगत् भी इतना विराट् है कि कुछ कहा नहीं जा सकता। बड़ा कठिन है भावों के जगत् को समझना। यदि कोई व्यक्ति वीतराग न हो और केवल ज्ञानी बन जाए तो क्या होगा? वह जी नहीं सकेगा। यह अच्छा किया, एक शर्त लगा दी - तुम केवल ज्ञानी बनने से पहले वीतराग बन जाओ, नहीं तो बड़ा खतरा है । इन सारे संदर्भो में हम देखें । कितना विराट् है हमारे भावों का जगत् और कितना विशाल है हमारा कषाय का जगत् । जो इस जगत् से परे चला जाता है, उसके लिए न जीवन समस्या है, न मरण समस्या है। उसे समस्याविहीन जीवन का सूत्र उपलब्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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