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________________ कितना विशाल है कषाय का जगत् ! इतना बड़ा जगत् है ! अध्यात्म-विज्ञान में भावों को समझे बिना जीवन की कोई व्याख्या नहीं की जा सकती। जैसे मनोविज्ञान में मन को समझे बिना व्यक्तित्व की व्याख्या नहीं की जा सकती, वैसे ही अध्यात्म-विज्ञान में भावों को समझे विना जीवन और व्यक्तित्व की कोई व्याख्या नहीं की जा सकती। व्यक्तित्व : व्याख्यासूत्र व्यक्तित्व की व्याख्या का सूत्र है-भावों का परिवर्तन । इन भावों को जैनाचार्यों ने दो भागों में विभक्त किया --रागात्मक भाव और द्वेषात्मक भाव । इसका विस्तार चार भागों में हो गया १. रागात्मक भाव २. देषात्मक भाव ३. मायात्मक भाव ४. लोभात्मक भाव ।' यह सारा है भाव का जगत् । अप्रिय घटनाएं क्यों घटती हैं ? भाव का उद्वेग, भाव का आवेश उभरता है, हिंसक घटनाएं घट जाती हैं । जितनी भी असामाजिक प्रवृत्तियां होती हैं, उनके पीछे काम कर रहा है भाव । भाव को समझना बहुत कठिन है पर बहुत जरूरी भी है । बच्चे को कोई कड़वी दवा दी जाए, वह लेता नहीं है। वह मीठी दवा को पसंद करता है। जब मीठी चीज पसंद करता है तब कड़वी लेने की जरूरत भी पड़ जाती समान नहीं है अभिव्यक्ति ___ भाव को समझने के लिए स्थानांग सूत्र में बहुत व्याख्याएं की गई हैं । एक बहुत बड़ा प्रकरण है-भाव का तारतम्य कैसा होता है ? सब व्यक्तियों में भाव एक रूप नहीं होता । किसी में भाव प्रबल, किसी में मंद और किसी में मध्यम होता है । भाव की मृदु, मध्य और अधिक मात्रा होती है। उन मात्राओं के कारण यह सारा तारतम्य दिखाई दे रहा है । एक परिवार में एक व्यक्ति क्रोधी है, वह सारे परिवार को तिलमिला देता है । दूसरा बहुत शांत है, तीसरा मध्यम है । दस व्यक्ति हैं तो दस प्रकार का तारतम्य मिल जाएगा। भावों की अभिव्यक्तियां सबमें समान नहीं होती और भावों के स्पंदन भी सबमें समान नहीं होते । चार प्रकार का पानी तरतमता के साथ हमारे भाव काम करते हैं। भावों की लिप्तता १. ठाणं ४/७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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