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________________ कितना विशाल है कषाय का जगत् ! टूट रही है ओजोन पर्त ___ एक महासमुद्र, जिसकी कुछेक ऊमियां ऊपर उठती हैं और सारे विश्व में अपना प्रभाव डाल जाती हैं । यह सारा विश्व कभी हंसता है, कभी रोता है । कभी हर्ष, कभी शोक । यह उस महासमुद्र की ऊर्मियों का प्रभाव है । वे जब जब ऊपर उठती हैं. सारे संसार को अपनी चपेट में ले लेती हैं। कहा जाता है-समुद्र का जलमान बढ़ रहा है । एक दिन ऐसा समय आएगा, बड़े-बड़े नगर उसकी चपेट में आ जाएंगे । यह जलमान बढ़ रहा है ओजोन पर्त के टूटने के कारण । जैसे-जैसे ओजोन पर्त टूटती जा रही है, तापमान बढ़ता जा रहा है । समुद्र का जलमान ऊपर उठ रहा है। एक तापमान हर व्यक्ति के भीतर है और वह कब से ही उसकी ओजोन की पर्त को खंड-खंड कर रहा है। इतना गहरा तापमान प्रत्येक व्यक्ति के भीतर बैठा है। ऐसा कोई व्यक्ति मुश्किल से मिलेगा, जिसका तापमान घटे-बढ़े नहीं। उसी स्थिति में ये सारी घटनाएं घटित होती हैं । वह है भावों का महासागर, उसमें उतार-चढ़ाव आता रहता है । भावों की दुनिया हमारा सारा जीवन भाव का जीवन है। अगर भाव को जीवन से निकाल दें, तो फिर श्मशान की शांति, मत्यु की शांति और आकाश की शांति में कुछ भी अन्तर नहीं होगा । जीवन में भावों का विकास इन सभी उतार-चढ़ावों का विकास है। एक प्रकार से सारी दुनिया भावों की दुनिया है । अगर भाव नहीं होता तो काव्य नहीं होता । भाव नहीं होता तो कोई साहित्य नहीं होता, न स्थायी, सात्विक और संचारी परिवर्तन हो पाता। जितना आंगिक परिवर्तन है, मानसिक परिवर्तन है, वह भाव का परिवर्तन है। भाव पीछे रहता है, आगे दूसरी अभिव्यक्ति आ जाती है। शरीर में परिवर्तन आता है भाव से। जैसा भाव वसी रचना । कभी भृकुटि तन जाती है, तो आंख में लाल डोरे पड़ जाते हैं । कभी भृकुटि शांत रहती है तो आंख में से अमृत टपकने लग जाता है। यह भृकुटि का तनाव, पैरों की गति का परिवर्तन जितना भी होता है, सब भावों के कारण होता है । हमारे भाव का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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