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तीन चक्षु
पर बड़ा भरोसा होता है। व्यक्ति विश्वास एवं बल के साथ कहता है-अमुक घटना को मैंने आंख से देखा है। वस्तुतः वह परोक्षतः देखता है, प्रत्यक्षतः तो जान भी नहीं सकता। आदमी आंखों से भी स्थिति को नहीं देख सकता । हमारा देखने का कोण बदलता है, प्रकार बदलता है तो दृश्य भी बदल जाएगा। वास्तव में जो दृश्य हम देख रहें हैं, वह वैसा ही है, यह कहना बड़ा कठिन है । एक व्यक्ति एक दृश्य को हजार प्रकार का देख लेता है
और हजार कोणों से देख लेता है। आंख का काम है देखना, पर देखने की हमारी शक्ति है परोक्ष । हम साक्षात् या प्रत्यक्ष नहीं देख सकते। इसलिए सूत्रकार ने इस आशय को पकड़ा-एगचक्खु छउमत्थे-जो छद्मस्थ है, जिसके पास अतीन्द्रिय चेतना विकसित नहीं है, वह व्यक्ति एक आंख वाला है । आकार से तो दो आंखें हैं पर प्रकार से एक ही आंख है-परोक्षदर्शी ।
एकचक्षु का मतलब है परोक्षदर्शी। वह प्रत्यक्ष और साक्षात् को देखने वाला नहीं है । वह न सूक्ष्म को देख सकता है, न व्यवहित को देख सकता है और न दूरस्थ वस्तु को देख सकता है । उसकी एक निश्चित सीमा है, वह उस निश्चित परिधि में ही देख सकता है । आगम में सभी को एक आंख वाला माना गया है । एक आंख का मतलब है ----प्रत्यक्ष को न देखने वाली आंख । देवता हैं द्विचक्षु
प्रश्न है-दो आंख किसके पास है ? देवता को दो चक्षु वाला बतलाया गया है। उनमें अवधिज्ञान का और विकास होता है। उनमें अतीन्द्रिय ज्ञान है । कहा गया -देवा अवधिचक्षुषः-देवता अवधिचक्षु वाले हैं । देवताओं के वैक्रिय शरीर में भी इन्द्रियां होती हैं, मतिज्ञान और श्रुतज्ञान होता है। वे निरन्तर अवधिज्ञान से नहीं देखते । जब कोई विशेष बात देखनी होती है तब अवधिज्ञान का प्रयोग करते हैं। सामान्य जीवन में प्रत्यक्ष आंख को ही काम में लेते हैं। इसलिए उन्हें दो आंख वाला कहा गया है। एक आंख तो प्रत्यक्ष को देखने के लिए है और दूसरी परोक्ष को देखने के लिए है। तोन चक्षु
तीन चक्षु वाला कौन है ? यह बड़ा विकट प्रश्न है । कहा गयाउत्तम ज्ञान, दर्शनधर तीन आंख वाला होता है । यह विशेषण सामान्यतः केवलज्ञानी के लिए ही होता है। जो सर्वज्ञ बन गया, केवलज्ञानी बन गया, उसे तीन आंख वाला मानें, यह उलझन भरी बात है। केवली के एक आंख हो जाती है। तीन आंखें कैसे माने ? सारे ज्ञान उसी एक आंख में समाहित हो जाते हैं। केवलज्ञानी के लिए कहना चाहिए-सर्वचक्षुषः ।
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