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________________ मंजिल के पड़ाव है । अकेला कौन हो सकता है ? जो श्रुत से ससहाय हो गया, वह बाहर में असहाय हो सकता है । जब तक श्रुत का सहारा नहीं मिलेगा तब तक कोई भी असहाय या ससहाय नहीं हो सकेगा। इस निरालंब गगन में, जीवन में कोई सबसे बड़ा सहारा है, तो वह है श्रुत का । अनुभवों का, विचारों का एक ऐसा बड़ा खजाना है। कहीं भी कठिनाई आए तो उसमें से समाधान निकल आएगा । यह श्रुत राशि-ज्ञान राशि हमारा सहयोग करती है । आदमी को कैसे जीना है ? कहां जाना है? क्या करना है ? सबके लिए प्रकाशदीप का स्तंभ लिए खड़ा है हमारा श्रुत ज्ञान । एक प्रेरणा बार-बार दी जाती है-दशकालिक सूत्र पढ़ो, चितारो। इसका अर्थ है-एक दशवकालिक सूत्र पढ़ने से पचासों मित्र मिलेंगे । मित्र का काम है कठिनाई में साथ देना । ब्रह्मदत्त को एक मित्र मिला था, जो लाक्षागृह से उसे बचा लाया । एक सूत्र में न जाने हमारे कितने मित्र बैठे हैं । यदि उत्तराध्ययन को कंठस्थ करके उस पर मनन कर लिया तो मित्रों का संसार बसा लिया। यह है श्रुत का आलंबन । अकेला होना दूसरी बात है अकेला होना । जिसे श्रुत का आलंबन मिल गया, वह अकेला हो गया। अकेले का मतलब जंगल में चले जाना नहीं है । यद्यपि इसका एक अर्थ यह भी रहा है। प्राचीनकाल में साधना का यह एक प्रकार था। जंगल में जाकर अकेले में साधना की जाती थी। ये मनोरथ सब प्राचीनकाल के हैं पर यह जरूरी नहीं है कि तीन ही मनोरथ हों। नये मनोरथ भी पैदा किए जा सकते हैं। मनोरथ का मतलब है, एक ऐसा रास्ता या पथ, जिस पर चलते रहें। यदि हमें सफल जीवन जीना है तो मनोरथ के साथ चलें, मनोरथ के साथ जीएं । समाधिमरण जीवन की सफलता का सबसे बड़ा सूत्र है --समाधिमरण । यह साधना के उत्कर्ष की स्थिति है । इतना बड़ा संकल्प दे दिया कि मुझे मरना कैसे है ? समाधिमरण कैसे करना है ? मरते समय कैसी स्थिति रहे ? आचार्य भिक्षु ने कहा था.-.-उणायत कोई रही नहीं--- मेरे मन में उणायत नहीं रही, कमी का अनुभव नहीं रहा । यह स्थिति आ जाए । मरते समय यह न आए कि इसका क्या होगा ? उसका क्या होगा? वह क्या करेगा ? पीछे क्या होगा? यह चिन्ता का विषय नहीं होता। जो सबके साथ होता है, पीछे वही होगा, कोई नई बात नहीं होगी । आचार्य भिक्षु का यह सूत्र-- । 'मन में कोई उणायत रही नहीं'-एक आलोक दीप है। इस स्थिति में जो मरता है, उसका जीवन सफल बन जाता है। यदि मरते समय मन में कुछ बातें रह जाती हैं तो वे रह ही जाती हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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