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तीन मनोरथ
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यह जीवन का बहुत बड़ा सूत्र है । कब ऐसा होगा ? हम इस प्रतीक्षा में लग जाएं कि वह दशा कब आएगी ? फिर कोई प्रदूषण रहने वाला नहीं है । यह संकल्प जागना चाहिए किन्तु व्यक्ति अपना संकल्प जगाए, यह बड़ा मुश्किल काम है । नेता या आचार्य वही है, जो संकल्प जगा सके । आचार्य संघ में संकल्प जगा सके तो एक साथ काम हो जाता है और नेता राष्ट्र में संकल्प जगा सके तो एक साथ काम हो जाता है । राष्ट्र की विशाल सेना है, उसके पास आधुनिक शस्त्रास्त्र हैं, वह लड़ती है पर विजय का यह प्रमुख कारण नहीं होता । उसका कारण बनता है विजय के संकल्प को जगाना |
संकल्प है मनोरथ
प्रश्न होता है - मनोरथ क्या है ? हमारे संकल्प का जागरण ही मनोरथ है | सबसे बड़ी बात है संकल्प का जाग जाना । हमारा ध्यान टिकता नहीं है इसलिए संकल्प जागता नहीं है। उसके न जागने में मन की चंचलता बड़ा कारण है | जब तक हम मानसिक क्रिया के साथ चलेंगे तब तक हमारा संकल्प मजबूत नहीं बनेगा । जो ध्यान मन से जुड़ा हुआ है, उसकी स्थिति भी बड़ी विचित्र होती है । मानसिक क्रिया के विश्लेषण के संदर्भ में ध्यान को तीन भागों में बांट दिया गया। पहली बात है ग्राहक प्रक्रिया | कोई इन्द्रिय किसी बात को ग्रहण करती है और उसी बात पर हमारा ध्यान टिक जाता है । कोई चीज देखी और उस पर ध्यान टिक गया । पहले ग्रहण का काम होता है । दूसरी है चुनाव की प्रक्रिया | जब दो-तीन वस्तुएं सामने आ जाती हैं, तब आदमी चयन करता है- इनमें से मुझे कौनसी ग्रहण करनी है ? तीसरी है प्रेरणात्मक प्रक्रिया या गत्यात्मक प्रक्रिया | प्रेरणा किसकी आ रही है ? कौन भीतर काम कर रहा है ? इसका बोध होने पर ध्यान की सफलता संभव बनती है ।
तीन मनोरथ
महावीर ने मुनि के तीन मनोरथ बतलाए' -
१. कब मैं अल्पश्रुत या बहुश्रुत का अध्ययन करूंगा ?
२. कब मैं एकलविहार प्रतिमा का उपसंपादन कर विहार करूंगा ? ३. कब मैं मारणान्तिक संलेखना की आराधना से युक्त होकर प्रायोपगमन अनशन स्वीकार कर मृत्यु की आकांक्षा न करता हुआ विहरण करूंगा ?
पहला चुनाव किया श्रुत का दूसरा चुनाव किया एकलविहार प्रतिमा का । एक सार्थक दिशा है-मुनि के लिए अकेला होना अच्छी बात
१. ठाणं ३ / ४९६
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