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तीन मनोरथ
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सारे विश्व में पर्यावरण प्रदूषण की चर्चा है । ऐसा लगता हैप्रदूषण घट नहीं रहा है, बढ़ रहा है । कारण यह है - प्रदूषण को मिटाने का संकल्प जागा नहीं है । संकल्प नहीं जागा, इसलिए बदलाव नहीं आया । संकल्प जागे तो बदलाव आ जाए । प्रश्न पर्यावरण प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण या मानसिक प्रदूषण का नहीं है, मूल प्रश्न है संकल्प का । हमारा संकल्प जगा या नहीं जगा ?
संकल्प और संयम
भगवान महावीर ने संकल्प पर बहुत बल दिया । यह स्वाभाविक है - जो व्यक्ति संयम को मूल्य देगा, उसे संकल्प को मूल्य देना ही होगा । संकल्प और संयम — दोनों एक साथ चलते हैं । संकल्प के बिना संयम नहीं होता और संयम के बिना संकल्प नहीं होता ।
जब संकल्प जागता है तब मनुष्य जाग जाता है, उसकी कार्यशक्ति जाग जाती है। जहां यह जागृति है, वहां निश्चित सफलता मिलती है । हम इस सचाई को समझें-जहां संकल्प है वहां कैसी विफलता ! जहां असंकल्प है, वहां कैसी सफलता !
संकल्पो नाम जागत, जागत मानवस्तथा । असंकल्पेक्व साफल्यं, क्व संकल्पे तथा परम् ॥
मनोरथ है हमारा संकल्प । जो आदमी संकल्प करता है, मनोरथ करता है, वह उसी दिशा में आगे बढ़ना शुरू हो जाता है । आदमी की मनोभावना का पता लग जाता है । व्यक्ति के मन में क्या संकल्प हो रहा है, यह जानना आसान है । वह अपने आप संकल्प को गुनगुनाता है, दोहराता है ।
आचार्य का काम
आचार्यश्री का चतुर्मास श्रीडूंगरगढ़ में था । आंगन को साफ कर रहा था और यह पद गुनगुना रहा दिन आवसी' । मुनि दुलीचन्दजी ने कहा- - आप क्या कब आएगा ? जब यह आंगन साफ करना छूट जायेगा तब वह समय
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आएगा ।
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आहार के बाद मैं
था - 'वा दशा किण कह रहे हैं, वह समय
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