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अनुशासन की त्रिपदी
कारण कहीं चूक या भूल हो सकती है, कहीं परस्परता में अंतर आ सकता है। इस स्थिति में ऊपरी अनुशासन भी चाहिए, जो उसे फिर समरस बना सके । इसलिए परानुशासन भी जरूरी है संगठन के लिए। कोरा आत्मानुशासन अकेले में ही हो सकता है किन्तु कोरा परानुशासन संघ के लिए नहीं हो सकता। धर्मसंघ के लिए तदुभय अनुशासन अपेक्षित है। आत्मानुशासन और परानुशासन-दोनों का मिला-जुला रूप है तदुभय अनुशासन । कुछ व्यक्ति आत्मानुशासी होते हैं और कुछ परानुशासी । जो आत्मानुशासन और परानुशासन दोनों से युक्त है, वह संघ की वृद्धि एवं प्रगति के लिए उपयुक्त है।
आत्मानुशासकः कश्चित्, कश्चित् परानुशासकः ।
द्वयानुशासको युक्तः, गणसंततिवृद्धये ॥ हम स्वयं भात्मानुशासी बनें, आत्मानुशासन के साथ-साथ एक अनुशासन ऐसा रहे, जो आत्मानुशासन को अधिक बल दे सके, उसका विकास कर सके । यह वांछनीय है और इसी के आधार पर धर्मसंघ या समाज प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।
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