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________________ २२ मंजिल के पड़ाव बनता है जब पुण्योदय प्रबल होता है । अगर विघ्न और बाधाएं होतीं तो ऐसी बात आदमी सोच भी नहीं सकता । चार बातें जहां आत्मोत्सर्ग की बात है वहां आत्मानुशासन, परानुशासन और तदुभय अनुशासन-तीनों विकसित होते हैं । तदुभय अनुशासन में मध्यस्थता है, अपने पर अंकुश है तो साथ-साथ में कला और पुण्योदय भी है। उसमें पुण्योदय भी चाहिए और चातुर्य भी चाहिए । अनुशासन के लिए ये चार बातें अपेक्षित हैं १. अपने पर नियंत्रण यानि अपने राग-द्वेष पर पर्याप्त अंकुश । २. पुण्योदय ३. कला या चातुर्य ४. मध्यस्थता। इन चारों का योग मिलता है तब ‘तदुभय अणुसिट्ठि' की बात संभव बनती है। तेरापंथ : अनुशासन तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्य तदुभय अनुशिष्टि का दायित्व निभाता है किन्तु यदि साधु-साध्वियां आत्मानुशासन का दायित्व न निभाए तो आचार्य किस पर अनुशासन करेगा? संघ तब चलता है, जब उसमें आत्मानुशासन का मादा होता है । संघ का प्रत्येक साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका अपने पर भी अनुशासन रखना जानता है और अनुशासन को आगे बढ़ाना चाहता है । ऐसा होता है तब अनुशासन तेजस्वी बनता है । यह आत्मानुशासन की पहली शर्त है । अगर यह नहीं है तो परानुशासन की बात भी नहीं आएगी। पहले अनुशासन चाहने वाली बात होनी चाहिए। जो व्यक्ति जिस बात को चाहता ही नहीं है, वह कैसे सम्भव होगी ? सबसे पहली बात है, अपने आप पर अनुशासन करना सीख लेना । वही संघ अच्छा चल सकता है, जिसके सदस्य आत्मानुशासी होते हैं, जितनी सीमा तक अपने पर नियंत्रण रखना होता है, उस सीमा को जानते हैं, उस सीमा का अनुपालन करते हैं। आत्मानुशासन : परानुशासन सबसे बड़ी बात है---ऐसी क्षमता पैदा करना, योग्यता पैदा करना, भूमिका का निर्माण करना, जिससे संगठन का प्रत्येक सदस्य अपने दायित्व का निर्वहन करे, अपने आप पर अनुशासन करना सीखे। यह बात आती है तो मूल बात ठीक हो जाती है। दूसरे अनुशासन की जरूरत भी रहती है। लक्ष्य तो है अपने पर अनुशासन करने का किन्तु प्रमाद के कारण, अज्ञान के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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