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अनुशासन की त्रिपदी
दुनिया में एक भी व्यक्ति अनुशासनविहीन मिलना मुश्किल है। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप पर अनुशासन बनाए हुए है। यदि चौबीस घंटे में एक घंटा भी अनुशासन समाप्त हो जाए तो जीवन समाप्त हो जाए । जीवन और अनुशासन-दोनों साथ-साथ चलते हैं । हम कल्पना ही नहीं कर सकते कि अनुशासनविहीन व्यक्ति साठ मिनट भी जी सकता है, किन्तु जहां हम अनुशासन की मीमांसा करते हैं वहां उसका अर्थ बदल जाता है, एक विशेष परिभाषा बन जाती है ।
अनुशासन का अर्थ
__ अनुशासन का अर्थ है-अपने आप पर नियंत्रण, जो किसी दूसरे को कोई बाधा न पहुंचाए, किसी के मार्ग में रोड़ा न बने । अपना हित पूरा सधे और किसी दूसरे का अहित न हो। यह अनुशासन एक विशेष बात है । ऐसा अनुशासन अपने आप पर करना, दूसरे पर करना या मिल-जुल करना -~~ये तीनों अपेक्षित हैं। अपने पर भी करना और दूसरे का भी मानना । अपने पर अनुशासन समाज का प्रत्येक प्राणी करता है। इसका लौकिक मूल्य भी है और आध्यात्मिक मूल्य भी है । व्यापक संदर्भ
स्थानांग सूत्र में अनुशासन के तीन प्रकार बतलाए गए हैं...१. स्व-अनुशासन २. पर-अनुशासन ३. तदुभय अनुशासन ।
अनुशासन के प्रश्न पर हम व्यापक संदर्भ में विचार करें। अपने पर अनुशासन करने का मतलब है वीतरागता की दिशा में प्रस्थान । जितना वीतरागता का भाव बढ़ता चला जाएगा उतना अपने आप पर अनुशासन होता चला जाएगा। पर-अनुशासन में वीतरागता की बात गौण होती है। क्योंकि वीतराग कभी अनुशासन नहीं कर सकता । जो वीतरागता के १. ठाणं ३/४१४
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