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________________ ११ न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति किया, मैंने वह किया। पहले वालों ने जो भी उपकार किया, वह उसे भुला देगा। ___ मुनि चांदमलजी ने पूज्य कालगणी की मुनि अवस्था में बहुत सेवा की। उसी सेवा को ध्यान में रखकर कालगणी ने उनके लिए क्या-क्या नहीं किया ? एक प्रकार से उनके साधु-जीवन को सुरक्षित रख दिया। वे स्वभाव से कुछ तेज थे । ऐसा तीव्र स्वभाव था कि साधुपन पलना मुश्किल हो जाए। कालूगणी ने उनका सिंघाड़ा भी बना दिया। स्वस्थ समाज का लक्षण जो बड़ा आदमी होता है, वह कभी अकृतज्ञ नहीं होता । स्थानांग में कहा गया-गुण विशेष नहीं है पर चार कारणों से गुण उद्दीप्त हो जाते हैं--- १. गुण ग्रहण करने का स्वभाव । २. पराए विचारों का अनुगमन करना । ४. प्रयोजन सिद्धि के लिए दूसरे को अनुकूल बनाना । ३. कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करना । उनमें एक प्रमुख कारण है-कृतज्ञता। अगर व्यक्ति कृतज्ञ है, तो दूसरे के मन में आदर का भाव पैदा होता है । जो कृतज्ञ है, कृत बात को कभी छिपाता नहीं है, वही महान् होता है। तेरापंथ का जो विकास हुआ है, उसमें अनेक कारण हैं पर एक मुख्य कारण है-कृतज्ञता । तेरापंथ ने इस महत्त्वपूर्ण सूत्र को समझा है । तीन उपकार ऐसे हैं, जिनका कोई बदला नहीं चुकाया जा सकता । पहला है-माता-पिता का बदला चुकाना मुश्किल है । हिन्दुस्तान में तो अब भी माता-पिता के प्रति थोड़ा आदर भाव है पर विदेशों में स्थिति बिलकुल दूसरी है । एक कहावत हैइस पेड़ को किसने पाला? ऐसे चिन्तन वाले व्यक्तियों से कभी भी अच्छा समाज नहीं बन सकता । स्वस्थ समाज उन व्यक्तियों से बना है, जिन्होंने कृत को माना है। कृतज्ञता का दूसरा स्थान है उपकारक । नीति-शास्त्र में यहां तक कहा गया एकाक्षरप्रवातारं यो नाभिमन्यते गुरुम् । श्वानयोनौ शतं गत्वा, चण्डालेष्वपि जायते ।। एक भी सुवचन जिससे सुना और काम बन गया, वह उपकारी है । आज स्वतंत्रता के नाम पर हर व्यक्ति का अहंकार बढ़ रहा है और इस सूत्र को भुलाया जा रहा है। १. ठाएं ४/६२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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