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________________ न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति गुणों की एक लंबी तालिका है। सबसे विशेष गुण क्या है ? सबसे बड़ी विशेषता क्या है ? वह गुण, जो एक व्यक्ति में हो और हजारों में संक्रांत हो जाए, दूसरों को प्रभावित करे, वह गुण कौनसा है ? वह विशेषता कौनसी है, जो दूसरों को कुछ सोचने के लिए बाध्य करे ? उन उदात्त गुणों की सूची में एक बड़ा गुण है-कृतज्ञता । जयाचार्य बहुत बड़े विद्वान् थे, शक्ति-संपन्न थे। उनमें प्रज्ञा और मेधा-दोनों जागृत थीं पर एक पद उनका रटा-रटाया-सा बन गयाभिक्षु. भारीमाल और ऋषि राय के प्रसाद से मैंने यह कार्य किया । यह वाक्य उनकी महानता का सूचक है । यह कृतज्ञता का गुण ऐसा है, जो व्यक्ति को महान् बनाता है । हो सकता है-जयाचार्य ज्यादा प्रतिभा या मेधा संपन्न हों पर अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करना, उनकी कृपा से ही सब कुछ होना, इसी स्वीकृति ने जयाचार्य को महान् बना दिया। उनकी महानता आज भी प्रभावित करती है । वे आगम के विद्वान् थे इसीलिए उन्होंने इस महत्त्व को समझा था। अकृतज्ञता : परिणाम स्थ नांग सूत्र का एक प्रकरण है-चार ऐसे स्थान हैं. जहां गुण छोटे होते हुए भी प्रदीप्त हो जाते हैं-' १. क्रोध २. प्रतिनिवेश-दूसरों की पूजा प्रतिष्ठा सहन न कर पाना ३. अकृतज्ञता ४. मिथ्याभिनिवेश-दुराग्रह । क्रोध एक ऐसा कारण है, जिसमें बहुत से गुण नष्ट हो जाते हैं । जो ईर्ष्यालु है, दूसरों की प्रतिष्ठा को सहन नहीं कर सकता, वह व्यक्ति चाहे कितना ही गुणी हो, उसके गुण नीचे दब जाते हैं। तीसरा कारण है अकृतज्ञता । जिसमें बहुत सारे गुण हैं, पर एक कृतज्ञता का गुण नहीं है, जो अकृतज्ञ है, उसके मारे गुण नीचे दब जाते हैं । ऐसा व्यक्ति अपनी पूजा अपनी प्रतिष्ठा और अपनी ही विशेषता बतलाएगा । वह कहेगा-मैंने यह १. ठाणं ४/६२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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