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भाषा-विवेक के छह सूत्र
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चाहिए । बहुत लोग मौन का अभ्यास करते हैं। यह संकल्प होना चाहिएजहां कलह होता हो, लड़ाई का प्रसंग हो, वहां मैं मौन रहूंगा। मेरी दृष्टि में यह मौन का सबसे सुन्दर सकल्प है। जहां बोलने से दूसरे का अहित होता है, वहां जो मौन करता है, उसने मौन का अर्थ समझा है । निश्चयकारिणी भाषा न बोलें
भाषा का पांचवां विवेक है-जो संदिग्ध अर्थवाली हो, वह भाषा न बोलें। जैन मुनि किसी भी कार्य के संदर्भ में कहते हैं-मेरा अमुक कार्य करने का भाव है। यह विवेक भाषा को नया स्वरूप देता है-कल करने का भाव है। निश्चयकारिणी भाषा में न बोलें। काम करने की इच्छा है, करना चाहता हूं पर यह न कहें कि मैं ऐसा करूंगा। निश्चय भाषा बोली जाए और वह काम न हो पाए तो भाषा का विवेक आहत होता है । परीक्षा करके बोलें
भाषा का छठा विवेक है-परीक्षा करके बोलें। तर्कशास्त्र में परीक्षा का अर्थ किया गया---बलाबलनिर्णय. परीक्षा । न्याय के द्वारा, तर्क और हेतु के द्वारा बल-अबल का परीक्षण कर लेना, इसका नाम है परीक्षा । प्रत्येक व्यक्ति को बोलने से पहले परीक्षा कर लेनी चाहिए। तोलकर बोले । ऐसा न हो, हमारा बोलना हमारे व्यक्तित्व की गरिमा को घटाने वाला बन जाए। व्यक्तित्व की जितनी पहचान वाणी के द्वारा होती है उतनी अन्य साधनों से कम होती है।
व्यक्तित्व को पहचानने के अनेक माध्यम बतलाए गए हैं। पैरों के निशान से, हाथ और मस्तक की रेखाओं से व्यक्तित्व की पहचान होती है । आंखों की पुतलियों से भी पहचान होती है । इन सबमें सबसे सशक्त पहचान का माध्यम है-माषा, वाणी । जो परीक्ष्यमाषी होता है उसका व्यक्तित्व महान् बन जाता है। वाणी के द्वारा व्यक्तित्व की अच्छी पहचान होती है। व्यक्ति कैसे बोलता है ? उसकी भाषा क्या है ? इसके द्वारा आदमी पहचाना जा सकता है । भाषा-विवेक का प्रयोग करें
दशवकालिक सूत्र का एक अध्ययन है-'वक्कसुद्धि'-'वाक्यशुद्धि' । प्रज्ञापना सूत्र का एक प्रकरण है भाषापद । जिस व्यक्ति ने अनेकांत को गहराई से समझा है, दशवकालिक में प्रतिपादित भाषा विवेक का अनुशीलन किया है, प्रज्ञापना के भाषापद का अर्थ समझा है, वह व्यक्ति अपने भाषा विवेक से अपना व्यक्तित्व निखार लेगा। इतना ही नहीं, दूसरे के व्यक्तित्व को भी पहचान लेगा । व्यक्ति कैसा है ? उसका सहज व्यक्तित्व खुली किताब की भांति सबके सामने आ जाता है। भाषा के द्वारा व्यक्ति को समझने में
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