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भाषा-विवेक के छह सूत्र
पांच ज्ञानेन्द्रियां और पांच कर्मेन्द्रियां-ये सम्पर्क के माध्यम हैं । एक से दूसरा होना, समाज के साथ सम्पर्क स्थापित करना इनसे ही संभव बनता है। यदि कान नहीं होते, जीभ नहीं होती तो प्रत्येक आदमी अकेला रहता, समाज नहीं बनता । व्यक्ति आंख से किसी को देखता है किन्तु उससे संपर्क सूत्र नहीं जुड़ता । संपर्क का सबसे बड़ा माध्यम है वाणी। कान और जीभ । जो व्यक्ति कान से सुनता है, उसके लिए दुनिया का अर्थ है । जो नहीं सुनता. उसे कैसा लगता होगा। जिसके आंख और कान-दोनों ही न हों तो वह एकदम निर्जी व पत्थर जैसा बन जाएगा । विकास का साधन
आज विकास का सबसे बड़ा साधन माना गया है-कम्युनिकेशन । एक दूसरे का संचार ठीक होना चाहिए। जब संचार और संवाद ठीक नहीं मिलता है तब समस्याएं उलझ जाती हैं। संप्रेषण का एक माध्यम है कान
और दूसरा माध्यम है भाषा । इसी को श्रुत कहा गया । श्रुत की प्रक्रिया भी कम्प्यूटराइज्ड चलती है। एक व्यक्ति के मन में कोई भाव उठा । वह उसे दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाएगा तो कितना समय लगेगा। भाषा बाहर आएगी, वह उस भाव को दूसरे तक पहुंचाएगी। कहीं द्रव्य श्रुत और कहीं भाव श्रुत । कितने सारे तत्त्व मिलते हैं तब एक बात सुनी और समझी जाती है । इसकी लम्बी प्रक्रिया है। एक व्यक्ति अपने भावों को दूसरों तक पहुंचा सके, तब श्रुत होता है। छींक और डकार को भी श्रुत माना गया है । संकेत को भी श्रुत माना गया है। इनके द्वारा भी हम अपनी बात पहुंचा देते हैं । अंगुली भी श्रुत होती है किन्तु ये बहुत अव्यक्त होते हैं। भाषा की समस्या
श्रुत का सबसे शक्तिशाली माध्यम बनता है भाषा। इसके साथ यह समस्या भी है-भाषा जितनी लाभदायक है उतनी ही खतरनाक हो सकती है। एक शब्द ऐसा निकल जाए तो महाभारत बन जाता है, रामायण बन जाती है। इसीलिए कहा गया-शक्ति का सम्यग् उपयोग करो। शक्ति के दोनों पहलू होते हैं । वह तारक भी होती है, मारक भी होती है । शक्ति का ठीक उपयोग किया जाए तो वह अभिनव सृजन का हेतु बन जाती है ।
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