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काले कालं समायरे
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है तो वह उपयोगी नहीं होता। पेट पर प्राण का प्रवाह नहीं है और बहुत खा लिया जाए तो उसका सम्यग् पाचन कैसे होगा ? प्राण का प्रवाह आंतों को सहयोग नहीं देगा। उसके सहयोग के बिना पाचन क्रिया कितनी सही होगी?
सामान्य व्यवहार के लिए भी समय चक्र को जानना जरूरी है। इस सन्दर्भ में सूक्ष्म नियम न भी जाने पर कुछ स्थूल बातें अवश्य जाननी चाहिए। किस समय भोजन करना चाहिए ? किस समय पढ़ना चाहिए ? किस समय चिन्तन करना चाहिए ? किस समय सोना चाहिए ? इन सबके उचित समय का बोध शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। काल-प्रतिलेखना
काल-प्रतिलेखना का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-काले कालं समायरे । यह जीवन-चर्या का सूक्ष्म निरीक्षण है। इन आठ अक्षरों में जीवन का दर्शन समाया हुआ है। व्यावहारिक दृष्टि से भी यह बहुत मूल्यवान् है । हम इस सूत्र का रहस्य समझे, हमारा शारीरिक क्रम ठीक चलेगा। मानसिक एवं भावात्मक क्रम सम्यग् बन जाएगा। इस बात पर बहुत ध्यान दिया गयाकिस समय भावनाओं का उतार-चढ़ाव ज्यादा होता है । किसी व्यक्ति से महत्त्वपूर्ण बात किस समय करनी चाहिए। रहस्य की बात किस समय करनी चाहिए । भावना के उतार-चढ़ाव के सन्दर्भ में ये सारे निर्देश दिए गए। जैन साहित्य में काल-प्रतिलेखना को बहुत महत्त्व दिया गया है । जो समय की सूचना देने वाला होता, उसे काल-प्रतिलेखक के रूप में एक अलग स्थान दिया जाता । वह समय-समय पर नक्षत्रों या अन्य पद्धतियों के आधार पर काल की सूचना देता रहता था। समय का अंकन
जीवन की सफलता का सूत्र है-समय का अंकन । यह बहुत सीधी बात है पर हम उसका अंकन कैसे करें ? समय का अंकन तब होगा जब उसका ठीक बोध होगा। जितना अच्छा समय का अंकन होगा, जितनी सम्यग् काल-प्रतिलेखना होगी, जितना करणीय कार्य यथासमय किया जाएगा, उतना ही जीवन-क्रम अच्छा चलेगा, जीवन की सारी क्रियाएं व्यवस्थित रूप से चलेंगी। जीवन का क्रम अव्यवस्थित नहीं होगा तो बुढ़ापा जल्दी नहीं आएगा । जैविक घड़ी में अव्यवस्था होती है तो बुढ़ापा जल्दी आता है, और भी अनेक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। समस्या से मुक्ति का सूत्र है-समय का महत्त्व समझे, काल का मूल्यांकन करें, समय को व्यर्थ न खोएं, जिस समय जो करणीय है, उस समय वही करें। जो इस सूत्र को हृदयंगम कर लेता है, वह समस्याविहीन जीवन का सूत्र पा लेता
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