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________________ १७६ मंजिल के पड़ाव ये जो निर्देश दिए गए हैं, वे सूक्ष्मज्ञान पर आधारित हैं । जिन्होंने निर्देश दिए, वे अपने ज्ञान से जीवन की सारी क्रियाओं और समय को जानते थे । भावनात्मक स्थिति और कार्य-क्षमता में अंतर आता रहता है । यह एक तथ्य है-आठ कर्मों का उदप या चार कर्मों का क्षयोपशम भी प्रतिदिन इस कालचक्र के साथ चलता रहता है। दर्शनावरणीय का उदय जितना रात को प्रबल होगा उतना अन्य समय में नहीं होगा। प्रत्येक कर्म का उदय काल के साथ बंधा हुआ होता है । शान्त समय हमारे जीवन से कई चक्र जुड़े हुए हैं--अयनचक्र, ऋतुचक्र, मासिक चक्र और दैवसिकचक्र-दिन और रात का चक्र। हम दिन और रात के चक्र में जी रहे हैं। इस चक्र पर बहुत ध्यान दिया गया। चौबीस घंटे का समय एक समान नहीं रहता । गर्मी का मौसम है। यदि दिन में एक बजे माला जपने बैठेंगे तो उसमें मन नहीं लगेगा। पश्चिम रात्रि में शांत समय रहता है । उस समय हमारा तापमान भी न्यून रहता है। वह मन की एकाग्रता के लिए अच्छा समय है । विज्ञान मानता है - हमारे शरीर में दो प्रकार के रसायन हैं-सेलाटोनिन और मेलाटोनिन । जब सेलाटोनिन रसायन का स्राव होता है तब एकाग्रता अच्छो रहती है । प्रातःकाल तीन से पांच बजे का समय ध्यान और एकाग्रता के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इसका कारण है -वह सेलाटोनिन के स्राव का समय है। दुघड़िया : जैविक घड़ी हम सूक्ष्मता में जाएं । कर्म, प्राण प्रवाह, समय चक्र और स्वरोदयइन चारों को सामंजस्य करके देखें तो हम प्रत्येक कार्य के लिए ठीक समय का निर्धारण कर सकते हैं। कोन सा समय हमारे लिए उपयुक्त है और कौनसा अनुपयुक्त-इसका निश्चय कर सकते हैं । ज्योतिष को जानने वाले दुघड़िया देखते रहते हैं। कौनसा दुघड़िया चल रहा है ? शुभ का चल रहा है या लाभ का चल रहा है ? अच्छा है या बुरा है ? हमारी जैविक घड़ी दुघड़िया है । इसे स्वरोदय कह दें या कालचक्र कह दें। जरूरी है समय का बोध इनका मूल हृदय यही है--जिस समय जो काम करना उचित है उस समय वही काम करना चाहिए । इस निर्देश को हम ठीक समझ लें तो हमारी क्रियाएं बदल जाएंगी। चिन्तन मनन के लिए दो से चार बजे तक का समय सबसे उचित माना गया है। जिस समय पेट पर प्राण का प्रवाह होता है, वह आहार का समय माना गया है । आठ से नौ बजे तक पेट पर प्राण का प्रवाह होता है । अगर उससे पहले लूंस-ठूस कर खाना खाया जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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