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मंजिल के पड़ाव
सर्वभूतात्मभूतवाद की बात को समझें, इसकी गहराई में जाएं, अनुभूति करें । बिना परोक्षानुभव के इसे उपलब्ध करें । शंकराचार्य ने लिखा- 'अपरोक्षानुभव के बिना केवल ब्रह्म शब्द से कुछ भी सिद्ध नहीं होता ।' हमारा सारा ज्ञान परोक्षानुभव है । इधर से कुछ लिया और जेब में डाल लिया । किसी ग्रन्थ से एक वाक्य लिया और स्मृति की पेटिका में रख लिया । वह स्मृति की पेटी ही काम कर रही है किन्तु यह परोक्षानुभव है । प्रत्यक्षानुभव के बिना 'पावं कम्मं न बंधई' की बात प्राप्त नहीं हो सकती । व्यक्ति से पाप तभी डरेगा जब सर्वभूतात्मभूतवाद का प्रत्यक्ष अनुभव होगा । यह प्रत्यक्षानुभव की बात बहुत कठिन है । यदि इस कठिन बात की साधना के लिए हमारी थोड़ी-सी चेतना जागे तो हम सर्वभूतानुभूति की रोशनी की ओर अग्रसर हो सकेंगे ।
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