SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ मंजिल के पड़ाव सदगति को दिशा में दुर्गति का पहला कारण है सुख लोलुपता। सुगति का पहला कारण है तपस्या । जिसके जीवन में तपस्या आ गई, उसकी निश्चित सुगति हो जाती है। अग्नि में तपे बिना सोना कभी कुंदन नहीं बनता । तपना बहुत जरूरी होता है कुछ पाने के लिए। जहां सरलता है वहां सुगति है । जहां कुटिलता है वहां दुर्गति आएगी। जो लोग सरल और भद्र होते हैं, वे अच्छी गति को प्राप्त होते हैं। जो सहिष्णु हैं, जिनका अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण है, वह सद्गति की दिशा में कदम बढ़ाता है । जिसका अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण नहीं है उसकी सद्गति नहीं होती। जो परीषहजयी है, समस्याओं के सामने घुटने नहीं टेकता, सुगति उसके हाथ में होती है । हाथ में है सदगति दुर्गति और सुगति-दोनों के कारण हमारे सामने हैं। दुर्गति और सुगति-दोनों हमारे हाथ में हैं। हम इनका पूरा तन्मयता से मनन करें। दुर्गति के कारणों से बचें, सुगति के कारणों को जीएं। तपस्या और ऋजुता को अपनाएं परीषहों को जीतें, सुगति का द्वार खल जाएगा। यदि ऐसा करना नहीं चाहते हैं, सुगति की आकांक्षा नहीं है तो दुर्गति उसके सामने खड़ी है। जो व्यक्ति कुछ बनना चाहते हैं, सुगति चाहते हैं, उनके लिए इन आध्यात्मिक सूत्रों का मनन आवश्यक है, दुर्गति के हेतुओं का त्याग और सुगति के हेतुओं का स्वीकरण अनिवार्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy