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सद्गति उसके हाथ में है
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लक्षण बहुत अच्छा है किन्तु इसके साथ इच्छा को जोड़ना अपेक्षित है । चाह और क्रिया
प्रश्न है इच्छा का। इच्छा किस ओर जा रही है ? सद्गति और दुर्गति-दोनों मनुष्य के हाथ में है। सुख और दुःख का कर्ता आत्मा है, चेतना है। सद्गति और दुर्गति उसके हाथ में कैसे है ? इसका उत्तर इस प्रश्न में छिपा है-मनुष्य की इच्छा किस दिशा में जा रही है ? दशवकालिक सूत्र में यह विवेक प्रतिपादित है-तुम सद्गति चाहते हो तो इच्छा को किस दिशा में प्रेरित करना है, यह जानो। यदि दुर्गति चाहते हो तो इच्छा कहां जाएंगी, यह देखो। वस्तुतः कोई भी आदमी दुर्गति चाहता नहीं है। चाह और क्रिया-दोनों साथ-साथ चलती हैं। यदि क्रिया चाह के अनुरूप नहीं है तो चाह झूठी हो जाएगी। जैसी चाह है, वैसी क्रिया है तो चाह और क्रिया--दोनों जुड़ जाएगी। इच्छा चाहे अव्यक्त हो पर उसके साथ क्रिया जुड़ जाती है, इच्छा और क्रिया में सम्बन्ध स्थापित हो जाता है । दुर्गति के चार हेतु
प्रत्येक व्यक्ति सद्गति चाहता है। दुर्गति कोई नहीं चाहता । सद्गति कब मिलती है ? दुर्गति क्यों मिलती है । ये प्रश्न प्रत्येक व्यक्ति के मानस में उठते रहे हैं । इन प्रश्नों के संदर्भ में कहा गया---
सुहसायगस्स समणस्स, सायाउलगस्स निगामसाइस्स ।
उच्छोलणापहोइस्स दुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ।। दुर्गति के चार कारण हैं - १. सुख की लालसा २. साताकुलता ३. अधिक सोना ४. विभूषा।
जो सुख का रसिक, सात के लिए आकुल अकाल में सोने व ला और हाथ पर आदि को बार-बार धोने वाला होता है, उसके लिए सुगति दुर्लभ है। जो आदमी इस प्रकार की मनोवृत्ति का होता है उसके हाथ में दुर्गति आती है । उसकी मृत्यु के बाद ही नहीं, वर्तमान जीवन में भी दुर्गति होती है। सुख की लोलुपता
दुर्गति का एक कारण है-सुख की लोलुपता, सुख का स्वाद लेना। जब हमारी इच्छा सुख-आस्वाद के साथ जुड़ जाती है तब दुर्गति का हेतु प्रस्तुत हो जाता है । सुख एक बहुत उलझा हुआ तत्त्व रहा है। हर प्रयत्न १. दसवेआलियं ४/२६
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