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सद्गति उसके हाथ में है
भामा रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डा. श्रीवास्तव ने चेतना का लक्षण बतलाया- 'जो कर्ता है, वह चेतना है। सब्जेक्ट (subject) कभी ऑब्जेक्ट (object) नहीं बनता। जैन दर्शन की दृष्टि से इस पर विचार करें तो कुछ और जोड़ देना होगा। वह यह है । जिसमें ऐच्छिक कर्तृत्व है, वह चेतना है। कर्तृत्व पुद्गल में भी होता है। एक परमाणु यहां है, वह लोकान्त तक चला जाता है। यदि क्रिया नहीं है तो गति नहीं हो सकती। प्रेरणा है इच्छा
कहा जाता है-सद्गति तुम्हारे हाथ में है । इसका मतलब है-वह इच्छाप्रेरक कर्तृत्व है। जब हम इच्छा करते हैं तब हमारी सारी क्रिया होती है । हमारा कर्तृत्व सुरक्षित है पर उसकी प्रेरणा है इच्छा । व्यक्ति में पहले इच्छा पैदा होती है-मैं चलंगा, मैं खाऊंगा । उसके बाद कर्तृत्व होता हैवह चलता है, वह खाता है। प्रत्येक क्रिया के पीछे इच्छा का योग होना जरूरी है। बिना इच्छा के जो कर्तृत्व होता है, वह अवचेतन मन का कर्तृत्व होता है। वह संबोधपूर्वक कर्तृत्व नहीं है। हमारा भाग्य हमारे हाथ में है और वह इसीलिए है कि उसके साथ हमारी इच्छा जुड़ती है, संकल्प जुड़ता है। इच्छा और कर्तृत्व
__ सांख्य दर्शन, जैन दर्शन और वेदांत दर्शन-ये तीन प्राचीन दर्शन हैं । सांख्य दर्शन में चेतना कर्ता नहीं, अकर्ता है । जितने भी ईश्वरवादी दर्शन हैं, उनमें चेतना कर्ता है-यह व्याप्ति नहीं बनती। वेदांत में भी कर्तृत्व स्वतन्त्र नहीं हो सकता । जैन दर्शन में कर्तृत्व की स्वतन्त्रता स्वीकृत है । वह न ईश्वरवादी है, न ब्रह्मवादी । वह केवल आत्मवादी है। आत्मा के साथ हमारा कर्तृत्व जुड़ता है। दो बातें प्रस्तुत हो गई-इच्छा और कर्तृत्व । हमारा कर्तृत्व इच्छापूर्वक है। हम जो चाहते हैं, वह करते हैं इसीलिए कहा गया-अप्पा कारगो-आत्मा कारक है। यह लक्षण सांख्य दर्शन में भी नहीं मिलता और वेदांत में भी नहीं मिलता। 'आत्मा कर्ता है" यह
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