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कैसे करें क्रियाएं जीवन की ? संयमपूर्वक खाओ । इससे पाप कर्म का बन्ध नहीं होगा-'
जयं चरे जयं चिट्ठ जयमासे जयं सए । _जयं मुंजतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधई ॥
'कहं चरे'-इस श्लोक की तुलना गीता के उस श्लोक से होती है, जिसमें समाधिस्थ स्थितप्रज्ञ के विषय में पूछा गया है
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा, समाधिस्थस्य केशव ।
स्थितधीः कि प्रभाषेत, किमासीत व्रजेत किम् ॥ क्रिया सम्यग् बने
यह पाठ एक मुनि के लिए ही नहीं, प्रत्येक व्यक्ति के लिए है समस्या यह है-बड़े-बड़े लोग भी सम्यग् चलना नहीं जानते, सम्यग् बैठना और सम्यग् खड़ा होना नहीं जानते । यह सब बच्चों को ही नहीं, युवकों को भी सीखना है। इस सीखने का असर शरीर के साथ-साथ हमारे मन और भावों पर भी पड़ेगा । तनाव क्यों आता है ? मांसपेशियों पर थोड़ा-सा भी दबाव पड़ता है, तो तनाव आ जाता है। चलना, बैठना, सोना, खड़ा होना, बहुत बड़ा विषय है हमारे जीवन का । हम इन क्रियाओं को इस प्रकार करें, जिससे न मांसपेशियों में तनाव आए, न मन में तनाव आए और न ही कोई भावनात्मक तनाव आए । हम इन क्रियाओं को सम्यक् बनाएं, स्वास्थ्य का रहस्य उपलब्ध होगा।
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१. इसवे आलियं ८/८ २. गीता २/५४
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