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________________ १५६ मंजिल के पड़ाव सहज क्रियाएं हैं । एक अवस्था के साथ हर व्यक्ति सीख जाता है। इसमें सीखना क्या है ? कहा गया-चलना नहीं सीखना है सीखना है, निवृत्ति के साथ चलना । गति में स्थिरता को सीखना है, बोलने में न बोलने को सीखना है, आहार में भी अनाहार को सीखना है। यह मर्म की बात है और यही जीवन का पहला पाठ है। मुनि बनने वाले व्यक्ति के लिए कहा गया-अब तक तुम प्रवृत्ति में थे और अब निवृत्ति में आ गए । तुम्हें निवृत्ति के साथ प्रवृत्ति करनी होगी। निवृत्ति को छोड़कर तुम्हारी कोई प्रवृत्ति नहीं होगी। कैसे चलें ? ___ एक शिष्य ने प्रश्न पूछ लिया-'भंते ! मैं इतने दिन चलता था, अब साधु बन गया। मैं चलूं या न चलूं।' 'वत्स ! चलना निषिद्ध नहीं है।' 'मैं कैसे चलूं?' 'वत्स ! यतना से चलो।' 'गुरुदेव ! यतना का तात्पर्य क्या है ?' 'वत्स ! पहली बात है-मंद गति से चलो, धीमे-धीमे चलो।' दूसरी बात है-चलते समय मन में उद्वेग नहीं होना चाहिए । शांति के साथ चलो। तीसरी बात है-चित्त में कोई विक्षेप या आतुरता न हो। चलने के विधान ये तीन बातें हैं-मंद, अनुद्विग्न और अविक्षिप्त चित्त । ये केवल मुनि के लिए ही नहीं है, सबके लिए हैं से गामे वा नगरे वा, गोयरग्गगओ मुणी । चरे मंदमविग्गो, अम्वक्खित्तेण चेयसा ॥ __ कहा गया-शरीर प्रमाण-भूमि को देखते हुए चले । यह भी चलने का सामान्य नियम है। बीज, हरियाली, जल आदि का वर्जन करते हुए चले पुरओ जुग मायाए पेहमाणो महि चरे । वज्जतो बीय हरियाई, पाणे य दगमट्टियं ॥ योग का निर्देश चलने के लिए योग का एक निर्देश है-न झुककर चले, न अकड़ कर चले, सहज और सीधा चले । . न तो अत्यन्त हर्ष प्रकट करता हुआ चले और न ही आकुलता का भाव लेकर चले । एकदम तटस्थ भाव के साथ चले१. दसवेआलियं ५/२ २. बसवेआलियं ५/३ ३. बसवेलियं ५/३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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