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________________ २२ कैसे करें क्रियाएं जीवन की ? प्रत्येक व्यक्ति चलता है, किन्तु क्या वह जानता है -कैसे चलना चाहिए ? चलना एक बात है और चलना सीखना बिल्कुल अलग बात है । जीवन का पहला पाठ है-चलना सीखें। जो तनावमुक्त जीवन जीना चाहता है, उसके लिए भी यह पहला पाठ है। प्राचीन काल में यह पाठ नये शिष्य को बड़े-बड़े आचार्य पढ़ाते थे । जो जीवन को धारण करता है, उसके लिए गति आवश्यक होती है । गति के बिना जीवन चलता नहीं है । चलना जरूरी है । साधु बनने का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति निवृत्ति के मार्ग पर चला जाए और वह गति को भी निवृत्त कर दे। वह आसन लगाकर एक जगह पर बैठ जाए और जीवन भर बैठा रहे । ऐसा जीवन बहुत कम लोगों के लिए सम्भव बनेगा, ऐसी साधना भी बहुत कम सम्भव बनेगी। गति में निवृत्ति है किन्तु साथ-साथ प्रवृत्ति भी है। निवत्तियुक्त प्रवृत्ति निवृत्ति और प्रवृत्ति का नया आयाम है–साधु का जीवन । एक जीवन ऐसा होता है, जिसमें कोरी प्रवृत्ति ही होती है। एक जीवन का अन्त ऐसा होता है,जिसमें कोरी निवृत्ति ही होती है, उसका नाम है-प्रायोपगमन । प्रायोपगमन अनशन में केवल निवृत्ति है, प्रवृत्ति नहीं है। जैसे कोई सूखा पेड़ गिरकर अचल पड़ा रहता है, वैसे ही अनशनकर्ता स्थिर हो जाता है। यह एकान्त निवृत्ति का जीवन है प्रायोपगमन । एकान्त प्रवृत्ति का जीवन मिथ्यादृष्टि का जीवन है । जो संयम करना नहीं जानता, उसका भी ऐसा ही जीवन होता है । जिसने संयम के रहस्य को समझा है, निवृत्ति और प्रवृत्ति के संतुलन का मार्ग समझा है, उसका जीवन न प्रवृत्ति का जीवन है और न निवृत्ति का जीवन है । उसका जीवन निवृत्ति-संवलित-प्रवृत्ति का जीवन होता है। नीचे निवृत्ति रहेगी, ऊपर लौ जलती रहेगी, दीवट स्थिर रहेगा। हर प्रवृत्ति के पीछे निवृत्ति होगी। निवृत्तिशून्य कोई भी प्रवृत्ति एक संयमी के लिए मान्य नहीं होती। जीवन का पहला पाठ हमारा आधारभूत सूत्र है-हमें चलना सीखना है, खड़ा होना सीखना है, बैठना, सोना, बोलना और खाना-सब कुछ सीखना है। ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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