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कल्याणकारी भविष्य का निर्माण
प्रत्येक आदमी कल्पना करता है --मेरा भविष्य उज्ज्वल बने। कोई भी धुंधले भविष्य को नहीं चाहता। उज्ज्वल भविष्य का निर्माण होता है वर्तमान में। अतीत बीत चुका है। उसके लिए हमारे हाथ में कोई शक्ति नहीं है । उसका शोधन हो सकता है, किंतु निर्माण में उसका योग कैसे हो सकता है ? नया निर्माण कोई करता है तो वह वर्तमान में ही होता है। वर्तमान में ही अतीत का शोधन होता है, वर्तमान में ही भविष्य का निर्माण होता है । वर्तमान को दोहरा दायित्व निभाना है । अतीत में जो भी किया, उसका अगर परिष्कार करना है तो केवल वर्तमान कर सकता है। कोई नया निर्माण करना है तो वह वर्तमान कर सकता है। इसीलिए वर्तमान को बहुत मूल्य दिया गया । भविष्य उज्ज्वल और पवित्र बने, इस विषय पर सोचा गया। ऐसा क्या हो सकता है, जिससे भविष्य अच्छा और सुखद बने, उसमें कठिनाइयां, संकट, विघ्न और बाधाएं न आएं। प्रत्येक व्यक्ति ऐसा भविष्य चाहता है, जिसमें समस्याएं न हों। . चिन्ता भविष्य की
एक राज्य की परंपरा थी-राजा को एक निश्चित समय के बाद सिंहासन से उतार दिया जाता। उसे जंगल में छोड़ दिया जाता। जैसे जापान में बूढ़े मां-बाप को जंगल में छोड़ दिया जाता है वैसे ही राजा को एक निश्चित अवधि के बाद जंगल में छोड़ने की परंपरा रही है। राजा ने सोचा-वह दिन आने वाला है, जिस दिन मैं जंगल में छोड़ दिया जाऊंगा। वहां जंगली जानवरों के साथ जीवन बिताना होगा। भविष्य की चिन्ता प्रत्येक व्यक्ति को रहती है। आदमी भविष्य के लिए सोचता है, धन भी जमा करता है । वह सोचता है-यह बुढ़ापे में काम आएगा । प्रत्येक व्यक्ति भविष्य के बारे में अपनी व्यवस्था करता है। राजा ने भी सोचा। वह दृष्टि संपन्न था इसलिए उपाय खोज लिया । जंगल को नगर से भी ज्यादा सुखद बना दिया । जंगल में भी वे सारी व्यवस्थाएं जुटा दी, जो शहरों में होती हैं । एक नया नगर बन गया । जंगल सुखकर हो गया। जब निश्चित समय आया, राजा को जंगल में छोड़ा गया किन्तु उसके लिए वह जंगल नहीं था, एक भव्य नगर था।
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