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मंजिल के पड़ाव
अनाबाध सुख ऐसा है, जिसमें कोई बाधा नहीं आ सकती। वीतराग या आत्मा का सुख ही निर्बाध होता है । इसके सिवाय सारे सुखों के पीछे बाधा लगी हुई रहती है।
सत्य की खोज का उपदेश दिया गया। सत्य और अनाबाध सुखदोनों का बिन्दु एक ही है। हम सत्य की खोज करें या अनाबाध सुख की खोज करें, दोनों एक हैं। अनाबाध सुख ऐसा शाश्वत सुख है, जिसे पाकर आदमी समग्र सचाई को उपलब्ध हो जाता है । 'अप्पणा सच्चमेसेज्जा' कहें या 'अप्पणा सोक्खमेसेज्जा'-दोनों की निष्पत्ति एक ही होगी । हम अनाबाध सुख की खोज के लिए प्रस्थान करें। वह हमारे लिए कल्याणकारी और आनंददायी होगा।
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