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सबसे बड़ा सुख है । व्यक्ति कितना ही धनवान् है, यदि है तो वह सुखी नहीं हो सकता । एक धनी विचारक ने वे सुखी हैं, जो अपने कानों से भीतर की आवाज सुनते हैं । वे सुखी हैं, जो अपनी आंखों से भीतर की घटना देखते हैं । जिनकी आंखें बन्द है भीतर को देखने के लिए, जिनके कान बंद हैं अपनी आवाज सुनने के लिए और जो आदमी आंखों से बाहर ही बाहर देखते रहते हैं, बाहर की आवाज सुनते रहते हैं, वे सुखी कैसे हो सकते हैं ? मैंने कभी ऐसे सुख का अनुभव नहीं किया, इसलिए मैं अपने सुख का अनुभव बताना चाहता हूं- आंखों को बंद करो, कानो को बंद करो, भीतर को देखो, भीतर की आवाज सुनो। वह सुख मिलेगा, जो कभी नहीं मिलता । वह है सन्तोष का सुख ।' सुख का सूत्र : सोमाकरण
मंजिल के पड़ाव
संतोष का सुख नहीं लिखा- 'दुनिया में
आदमी को कहीं न कहीं कुछ फुलस्टॉप लगाना पड़ता है । आदमी खाता है, फिर विराम दे देता है । पानी पीता है तो विराम दे देता है | क्या इच्छा को विराम देना जरूरी नहीं है ? संतोष का एक अर्थ है सीमाकरण | सीमा करो, असीम मत बनो । यह सीमाकरण सुखी होने का सूत्र है । आज की समस्या यही है - व्यक्ति सीमाकरण करना नहीं जानता । आचार्य श्री बम्बई में प्रवास कर रहे थे। जयप्रकाश नारायण का एक प्रस्ताव था - विशिष्ट अणुव्रती के पास पूंजी कितनी होनी चाहिए ? प्रस्ताव आया - एक लाख की सीमा होनी चाहिए। यह सीमाकरण की बात साम्यवाद में भी हुई— व्यक्तिगत संपत्ति की सीमा होनी चाहिए । प्रत्येक क्षेत्र में सीमा का अनुभव किया गया । यह सीमाकरण वास्तव में संतोष है । यदि एक आदमी सुबह से शाम तक खाता चला जाए, सीमा न करे तो क्या परिणाम आएगा ? विराम देना जरूरी है इसीलिए यह सूत्र दिया गया - संतोष अपने आप में सुख है ।
अस्ति
सातवां सुख है -अस्ति । यह विचित्र सुख है । 'है' यही सुख है । चाहे भौतिक या आध्यात्मिक दृष्टि से, व्यावहारिक या नैश्चयिक दृष्टि से, 'अस्ति' 'है' इससे बड़ा कोई सुख नहीं है । जहां 'हूं' हुमा, वहां सुख नहीं है | सुख है 'है' में । अस्तित्व में न कोई वचन होता है, न कोई लिंग । उसमें केवल व्यक्तित्व होता है । अस्तित्व की अनुभूति में जहां केवल 'है' है, वहां सारे दुःख समाप्त हो जाते हैं । 'मैं हूं' जहां यह अनुभूति है वहां दुःख आते रहते हैं । जहां 'अस्ति' की अनुभूति है, वहां सुख ही सुख है । इस सूत्र से दुःख और तथ्यों से छुटकारा मिल जाता है। जहां 'हूं' जुड़ता है | वहां कठिनाइयां पैदा होने लग जाती हैं । कर्तृत्व पर अहंकार छा जाता है ।
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