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________________ सुख के दस प्रकार १४३ १०. अनाबाध-जन्म आदि की बाधाओं से रहित सुख का होना, आत्मिक सुख की प्राप्ति । आरोग्य पहला सुख है-आरोग्य । राजस्थान की प्रसिद्ध कहावत है'पहला सुख निरोगी काया ।' शरीर स्वस्थ है तो सुख है। शरीर स्वस्थ नहीं है तो सुख भी गायब हो जाता है। शरीर के आधार पर ही किसी सुख की उपलब्धि की जा सकती है। शरीर का आरोग्य होता है तभी व्यक्ति कुछ कर पाता है । अस्वस्थ शरीर एक बाधा बन जाता है इसीलिए शरीर के आरोग्य को सुख माना गया है। दीर्घ आयुष्य दूसरा सुख है-दीर्घायु। आदमी ज्योतिषी को अपनी कुण्डली दिखाता है । वह यह जानना चाहता है-मेरी आयु कितनी है ? प्रत्येक व्यक्ति लम्बी आयु चाहता है। वह जल्दी मरना नहीं चाहता। कर्मशास्त्र में अल्पायु बंध को अशुभ कर्म का विपाक माना गया है। गरीब हो या भिखारी-कोई मृत्यु नहीं चाहता। दीर्घ-आयुष्य का होना अपने आप में एक सुख है। आढ्यता तीसरा सुख है-धनाढ्य होना । प्रश्न हो सकता है-धन संपन्न होना सुख कैसे है ? क्या धनवान लोग हीरे-पन्ने या सोने-चांदी को खाते हैं ? वे भी अनाज ही खाते हैं, किन्तु उन्हें यह अनुभूति रहती है-मेरे पास इतना धन है। यह अनुभव उन्हें सुख देता है । मैं आढ्य हूं', मैं धनवान हूं, मेरे पास विशाल संपदा है, यह चिंतन सुख प्रदान करता है। काम और भोग - चौथा और पांचवां सुख है-काम और भोग की उपलब्धि । काम और मोग भी व्यक्ति को सुख देते हैं। शब्द को सुनने और रूप को देखने से जो सुख मिलता है, वह काम है। स्पर्श या रस से जो सुख मिलता है. वह भोग है । व्यक्ति की कामनाएं पूरी होती हैं, वह भोग भी करता है । उससे उसे सुख मिलता है । संतोष छठा सुख है-संतोष । संतोष भी सुख है, यह बात सुनने में अटपटी लगती है । क्या संतोष भी कोई सुख है ? यह समझ से परे की बात प्रतीत होती है, किन्तु जिन लोगों ने संतोष के सुख का अनुभव किया, उन्होंने लिखा-मेरे बेटे को और बातें सिखाना, पर साथ में यह भी सिखाना कि संतोष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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