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सत्य के दस प्रकार
सके । भाषा अधूरी बात ही कहेगी। तुम उसे पूर्ण मानकर आग्रही बन जाते हो और इस स्थिति में ही समस्या उलझ जाती है।' ब्यापक इष्टिकोण
एक व्यापक दृष्टिकोण दिया गया कि दस प्रकार का सत्य होता है-दसविहे सच्चे पण्णत्ते । यदि इस तथ्य को ठीक हृदयंगम किया जाए तो ऋजुता आती है, सत्य के प्रति विनम्रता आती है, एक व्यापक सत्य को समझने का मौका मिलता है। यह सचाई भी समझ में आ जाती है-अर्थ की गहराई को भाषा या शब्द कमी नाप नहीं सकता। पनडुब्बी समुद्र के तल तक जा सकती है पर क्या एक छोटी-सी डोंगी तल तक जा सकेगी ? वह कभी नहीं जा पाएगी। भाषा की क्षमता, सत्य की अनन्तता और गहराई-इनमें सापेक्ष सम्बन्ध है। इस दार्शनिक पहल को ठीक समझ कर ही हम सत्य के प्रति न्याय कर सकते हैं और स्वयं अपने प्रति भी सच्चे रह सकते हैं।
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